1.बढ़ती महँगाई
विचार बिन्दु- 1. महँगाई की मार 2. निरंतर बढ़ती महँगाई 3. सरकार के दावे 4. आम लोगों पर प्रभाव 5. उपसंहार
महंगाई की मार पिछले दो दशकों से महँगाई द्रौपदी के चीर की तरह निरंतर बढ़ती जा रही है। विभिन्न वस्तुओं के मूल्य में अप्रत्याशित वृद्धि को देखकर आश्चर्य होता है। निरंतर बढ़ती हुई महँगाई भारत जैसे विकासशील देश के लिए निश्चित ही भयानक अभिशाप कहा जा सकता है।
निरंतर बढ़ती महंगाई बढ़ती हुई महँगाई का सर्वाधिक मुख्य कारण बढ़ती ■हुई जनसंख्या है। पिछले 50 वर्षों में हमारे देश की जनसंख्या लगभग तीन गुनी हो गई है। जनसंख्या की वृद्धि के अनुपात से विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि नहीं हुई। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती है, वैसे-वैसे विभिन्न वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है। माँग के अनुपात में यदि वस्तुओं की पूर्ति में वृद्धि नहीं होती, तो महँगाई का बढ़ना स्वाभाविक ही है। पिछले दशक में विभिन्न वस्तुओं पर लगाए गए करों में भी बहुत अधिक वृद्धि हुई है। बढ़ती हुई महंगाई का एक महत्त्वपूर्ण कारण व्यापारी वर्ग में बढ़ती हुई मुनाफाखोरी व जमाखोरी की प्रवृत्ति भी है। बड़े-बड़े व्यापारी प्रायः आवश्यक वस्तुओं का स्टॉक कर लेते हैं। इस प्रकार के वस्तुओं को वे मनमाने भाव बेचते हैं। गेहूँ, घी, चावल, चीनी जैसी आवश्यक न वस्तुएँ महँगे मूल्य पर भी खरीदने के लिए लोगों को विवश होना पड़ता है। वर्तमान युग में नेताओं को चुनावों में अत्यधिक धन राशि व्यय करनी पड़ती है। चुनाव में खर्च किया गया अधिकांश धन व्यापारी वर्ग से चंदे के रूप में आता है। चुनाव के पश्चात् व्यापारी वस्तुओं के मूल्य बढ़ा देते हैं। इस प्रकार नेताओं और व्यापारियों की मिली भगत से महँगाई निरंतर बढ़ती चली जाती है।
हमारे देश में निरंतर बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार भी मूल्य वृद्धि का एक मुख्य कारण है। प्राकृतिक आपदाएँ भी मूल्य वृद्धि में एक सीमा तक सहायक हैं। हमारे न देश में कभी सूखा पड़ जाता है, तो कभी विभिन्न नदियों में बाढ़ आ जाती है। प्रतिवर्ष हजारों व्यक्ति बाढ़ की चपेट में आकर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं तथा लाखों हेक्टेयर भूमि पर लहलहाती फसलें पानी में डूब जाती हैं।
सरकार के दावे-महँगाई पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार को कठोर कदम उठाना चाहिए तथा जनता को भी सादगीपूर्ण जीवन शैली में निष्ठा रखनी चाहिए। इसके अतिरिक्त आवश्यक पदार्थों के उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि होनी चाहिए। चुनाव वगैरह के नाम पर पैसों का अपव्यय न हो, यह ध्यान देना आवश्यक होगा। ।
आम लोगों पर प्रभाव- निम्न वर्ग तथा मध्यवर्ग के लोगों के साथ उच्चवर्ग के लोग भी महँगाई से त्रस्त हो उठे हैं। महँगाई का सबसे अधिक प्रभाव निम्न मध्य वर्ग पर हुआ है। इस वर्ग के लोग अपना सामाजिक स्तर भी बनाए रखना चाहते हैं तथा स्वयं को चक्रव्यूह में भी फँसा हुआ अनुभव करते हैं। अधिकांश वेतनभोगी कर्मचारी इस कमरतोड़ महँगाई के समक्ष घुटने टेक बैठे हैं। महँगाई के विकराल दानव ने आज संपूर्ण भारतीय समाज को आतंकित कर दिया है। भारत में 90% लोग महँगाई के दुष्चक्र में फंसे हुए हैं।
उपसंहार देश के नेता बार-बार आश्वासन देते हैं कि महँगाई को रोकने के लिए कारगर उपाय किये जा रहे हैं, परंतु नेताओं के आश्वासन पूर्णतः असफल सिद्ध हो रहे हैं। भारत एक निर्धन देश है। इस देश में मूल्यों का इस प्रकार बढ़ना निश्चय ही बहुत भयानक है। मूल्य वृद्धि के कारण जनता की क्रयशक्ति बहुत ही कम हो गई है।
2. पुस्तकालय
विचार विन्दु- 1. भूमिका, 2. महत्त्व, 3. उपयोगिता, 4. हानि, 5. निष्कर्ष
भूमिका पुस्तकें मानव की सबसे अच्छी दोस्त होती है जो बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक उसका सहारा होती है। पुस्तकों के कारण ही आज शिक्षा पद्धति सुदृढ़ हो पाई है। लोगों में ज्ञान और अनुभव का विस्तार हुआ है।
किसी भी व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं कि हर तरह के पुस्तकों का संग्रह कर रख सके। अंत ज्ञान की गंगा सबके लिए सुलभ हो सके परंपरा की चिन्तन सम्पदा हस्तगत हो सके, इसके लिए पुस्तकालय की आवश्यकता महसूस हुई। पुस्तकालय का अर्थ होता है- पुस्तकों का घर। यहाँ पर ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, राजनीति-विज्ञान आदि विषयों की अलग-अलग भाषाओं में पुस्तकों का संग्रह होता है। जिसका उपयोग हम आगे आने वाले जीवन को बेहतर बनाने के लिए कर सकते हैं।
महत्त्व पुस्तकालय का महत्त्व मानव जीवन में प्राचीन काल से रही है। यहाँ संसार के सर्वोत्तम ज्ञान और विचारों का संगम होता है। किसी प्राचीन विषय का अध्ययन करना हो या वर्तमान विषय का, विज्ञान और तकनीकी का अध्ययन करना हो या किसी कला या साहित्य का कविताओं की कोई अच्छी पुस्तक चाहिए या किसौ महापुरुष की जीवनी सब कुछ एक स्थान यानी पुस्तकालय में हमें मिल जाती है।
पुस्तकालय हमारे विद्यार्थी जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इनके माध्यम से हमें देश-विदेश के महान लेखकों की लिखी हुई पुस्तकें पढ़ने का अवसर मिल जाता है। विद्यार्थी यहाँ पर आकर आराम से शांति माहौल में पुस्तके पढ़ सकता है और अपने ज्ञान के जिज्ञासा को शांत कर सकता है।
उपयोगिता पुस्तकालय ज्ञान का असीम भंडार है। यह एक ऐसा स्त्रोत है जहाँ से ज्ञान की निर्मल धारा सदैव बहती रहती है। पुस्तकालय हमें प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान काल के विचारों से अवगत कराती है। कोई व्यक्ति एक सीमा तक ही पुस्तकें खरीद सकता है। सभी प्रकाशित पुस्तकें खरीदना सबके बस की बात नहीं। गरीब हो या अमीर, जो भी शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए पुस्तकालय
एक सच्चा मित्र की तरह हैं। इसलिए पुस्तकालय की उपयोगिता सदैव बनी रहेगी। हानि पुस्तकालयों से हानियाँ भी होती है, यह सर्वथा असंगत होगा, किन्तु कुछ लोग अच्छी वस्तु का दुरुपयोग करके उसे हानिकारक बना देते हैं। इसी प्रकार कुछ विद्यार्थी पुस्तकालय में जाकर मनोरंजन या कहानियाँ पढ़ते रहते हैं और अपनी पाठ्य – पुस्तकों की उपेक्षा कर देते हैं। जिसका परिणाम उनके लिए हानिकारक होता है।
पुस्तकालय में अक्सर देखा गया है कि कुछ लोग अच्छी-अच्छी पुस्तकों को चुरा लेते हैं या उसका पेज फाड़ लेते हैं। ऐसे में वे न सिर्फ दूसरों का नुकसान करते हैं बल्कि खुद का भी नुकसान करते हैं।
इसमें पुस्तकालय का कोई दोष नहीं है, वे ज्ञान के भंडार है। हमें ज्ञान ज्योति प्रदान करते हैं।
निष्कर्ष-पुस्तकालय वास्तव में ज्ञान का असीम भंडार है। देश की शिक्षित जनता के लिए उन्नति का सर्वोत्तम साधन है। भारत वर्ष में अच्छे पुस्तकालयों की संख्या पर्याप्त नहीं है। भारत सरकार इस दिशा में प्रत्यनशील है। वास्तव में पुस्तकें मनुष्य की सच्ची मित्र सदगुरु और जीवन पथ की संरक्षिका है।
3.होली
विचार बिन्दु- 1. भूमिका, 2. धार्मिक संदर्भ, 3. लाभ, 4. हानि, 5. उपसंहार।
भूमिका होली एक ऐसा रंगबिरंगा त्योहार है जो एक साथ मौज-मस्ती, रवानी-जबानी, रंगीली, अलमस्ती की याद दिलाती है। रंग और उल्लास का पर्व होली मनाने की तैयारी वसंत पंचमी से ही शुरू हो जाती है। भारतवर्ष के कोने-कोने में यह उत्सव पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा की शाम मुहूर्त के अनुसार होलिका-कुंड का पूजन कर होलिका दहन किया जाता है। होलिका-दहन के दूसरे दिन लोग एक-दूसरे पर रंग डालते हैं और गुलाल मलते हैं फिर होली मिलन में लोग वैर-भाव भूलकर गले मिलते हैं।
पूरी यसे क्ति अपने वन की
धार्मिक संदर्भ-यह पर्व भारतीय संस्कृति में धार्मिक संदर्भ से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि हिरण्यकश्यप नामक एक दानवराज था। स्वयं को ही भगवान मान बैठे हिरण्यकश्यप ने भगवान की भक्ति में लीन अपने ही पुत्र प्रहलाद को अपनी बहन होलिका के जरिये जिंदा जला देना चाहा था। लेकिन भगवान ने भक्त पर कृपा की। प्रहृलाद के लिए बनाई चिता में स्वयं होलिका जल गई जबकि उसे अग्निदेव का वरदान प्राप्त था। इसी धार्मिक संदर्भ के आधार पर होलिका दहन की परंपरा है। नास्तिकता पर आस्तिकता की बुराई पर भलाई की विजय के प्रतीक के रूप है। होलिका दहन के अगले दिन हर्षोल्लास के साथ होली मनाई जाती है।
लाभ-होली का यह पर्व पाप पर पुण्य तथा दानवता पर देवत्व के विजय का प्रतीक है। हर्षोल्लास का यह पर्व होली प्रीति का पेय है। यह पर्व हमें वैमनस्य, ईर्ष्या, द्वेष को भूलने तथा परस्पर प्रेम, स्नेह एवं एकता की भावना के साथ रहने का संदेश देता है। सभी लोग इस दिन अपने सारे गिले, शिकवे भुलाकर एक-दूसरेको रंग-अबीर लगाकर गले लगाते हैं। होली के रंग हम सभी को जोड़ता है और रिश्तों में प्रेम और अपनत्व के रंग भरता है।
हानि-कुछ अबोध जन इस दिन दूसरों पर सड़ा कीचड़ उछालते हैं, पत्थर फेंकते हैं, मद्यपान कर शर्मनाक गाने और गाली-गलौज करते हैं। कुछ लोग इस अवसर पर पुरानी अदावत का बदला लेना चाहते हैं, वर्गगत, जातिगत तथा संप्रदायगत विद्वेष का विष फैलाना चाहते हैं। वे भूल जाते हैं कि होली शत्रुता के विरुद्ध मित्रता, गंदगी के विरुद्ध स्वच्छता एवं अनेकता के विरुद्ध एकता का पर्व है।
उपसंहार होली एक सामाजिक पर्व है। होली भारत की सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक है और यह हमें प्रेम, स्नेह, भ्रातृत्व तथा एकता का पाठ पढ़ाता है। अतः हमें असामाजिक प्रवृत्तियों तथा शर्मनाक आचरण से दूर रहना चाहिए।
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