बिहार बोर्ड 10th और 12th Physics VVi Solved Question answer 2025
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बिहार बोर्ड 10th और 12th Physics VVi Solved Question answer 2025

श्यानता

श्यान बल (Viscous Force) किसी द्रव या गैस की दो क्रमागत परतों के बीच उनकी आपेक्षिक गति का विरोध करने वाले घर्षण-बल को श्यान बल कहते हैं। 

श्यानता (Viscosity) तरल का वह गुण जिसके कारण तरल की विभिन्न परतों के मध्य आपेक्षिक गति का विरोध होता है, श्यानता कहलाता है।

 

श्यानता केवल द्रवों तथा गैसों का गुण है।ब्रवों में श्यानता, अणुओं के मध्य लगने वाले संसंजक बलों के कारण होती है।गैसों में श्यानता इसकी एक परत से दूसरी परत में अणुओं के स्थानान्तरण के कारण होती है।

गैसों में श्यानता ब्रवों की तुलना में बहुत कम होती है। ठोसों में श्यानता नहीं होती है।एक आदर्श तरल की श्यानता शून्य होती है।

ताप बढ़ने पर ब्रवों की श्यानता घट जाती है, परन्तु गैसों की बढ़ जाती है। किसी तरल की श्यानता को श्यानता गुणांक (coefficient of viscosity) द्वारा मापा जाता है। इसका S.I. मात्रक डेकाप्वॉइज या प्वॉइजली (PI) या पास्कल सेकेण्ड (Pas) है। इसे प्रायः (n) (नीटा) द्वारा सूचित किया जाता है।

सीमान्त वेग जब कोई वस्तु किसी श्यान द्रव में गिरती है तो प्रारंभ में उसका वेग बढ़ता जाता है, किन्तु कुछ समय के पश्चात् यह नियत वेग से गिरने लगती है। इस नियत वेग को ही वस्तु का सीमान्त वेग कहते हैं। इस अवस्था में वस्तु का भार, श्यान बल और उत्प्लावन बल के योग के बराबर होते हैं। अर्थात् वस्तु पर कार्य करने वाले सभी बलों का योग शून्य होता है।

सीमान्त वेग वस्तु की त्रिज्या के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात् बड़ी वस्तु अधिक वेग से और छोटी वस्तु कम वेग से गिरती है।

धारा रेखीय प्रवाह (Steam Line Flow) द्रव का ऐसा प्रवाह जिसमें द्रव का प्रत्येक कण उसी बिन्दु से गुजरता है, जिससे पहले उससे पहले बाला कण गुजरा था, धारारेखीय प्रवाह कहलाता है। इसमें किसी नियत बिन्दु पर प्रवाह की चाल व उसकी दिशा निश्चित बनी रहती है।क्रांतिक वेग (Critical Velocity): धारारेखीय प्रवाह के महत्तम वेग को क्रांतिक वेग कहते हैं। अर्थात् धारा रेखीय प्रवाह की वह उच्च सीमा जिसके बाद द्रव का प्रवाह धारा रेखीय न होकर विक्षुब्ध हो जाए, वह वेग कांतिक वेग कहलाता है।

यदि द्रव प्रवाह का वेग क्रांतिक वेग से कम होता है. तो उसका प्रवाह उसकी श्यानता पर निर्भर करता है, यदि द्रव प्रवाह का वेग उसके क्रांतिक वैग से अधिक होता है, तो उसका प्रवाह मुख्यतः उसके घनत्व पर निर्भर करता है। जैसे-ज्वालामुखी से निकलने

बहुत अधिक गाडा होने पर भी तेजी से बहता है. क्योंकि उसका नाव अपेक्षाकृत कम होता है और ना ही उसके देग को निर्धारित करता है।(Bernoulli’s Theorem) जब कोई आदर्श इय किसी नाही में धाराखीया में बहता है, तो उसके मार्ग के प्रत्येक बिन्दु पर उसके एकांक आयतन की कुछ ऊर्जा (वात्र ऊर्जापतिज ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा का योग निघत होता है। इस प्रमेय पर आधारित (Venturimeter) से नही में इष के प्रवाह की दर हात की जाती है।

(Elasticity) प्रत्याभ्यता पदार्थ का वह गुण है जिसके कारण वस्तु उस पर लगाये गये बाह्य बत्र से उत्पन्न किसी भी प्रकार के परिवार्तन का विरोध करती है तथा जैसे ही बटा किया जाता है, वह अपनी पूर्व अवस्था में वापस आ जाती है।

(Elastic limit) विश्धक बत के परिमाण की वह श्रीपा जिससे कम बागाने पर पदार्थ में प्रत्यास्थता का गुण बना रहता है तथा जिससे अधिक बल छगाने पर पदार्थ का प्रत्यास्यता का गुण समाप्त हो जाता है, प्रत्यास्थता की सीमा कहाती है।

(Strain) किती तार पर विरूपक बल लगाने पर उसकी 1/L मारभिक उब्वाई में वृद्धि होती है, तो को विकृति कहते हैं।(Stress) प्रति एकांक क्षेत्रफल पर बगाये गये बल को

प्रतिबात कहते हैं।काम(Young’s Modulus of Elasticity) प्रतिषत और विकृति के अनुपात को तार के पदार्थ की प्रत्यास्थता का थापा कहते हैं।

नियम (Hooke’s Law) प्रत्यास्यता की सीमा में किसी वस्तु में उत्पन्न विकृति उस पर लगाये गये प्रतिबत के अनुक्रमानुपाती होती है। अर्थात्

प्रतिवत प्रतिषत विकृति या — (एक नियतांक) विष्कृति प्रत्यास्थता का गुणाक

प्रत्यास्थता गुणाक (E) का मान भिन्न-भिन्न पदार्थों के लिए भिन्न-भिन्न होता है। इसका 5.1. मात्रक न्यूटन मीटर होता है, जिसे कहते हैं।

बंग का प्रत्यास्थता गुणांक, (Y):यदि विकृति अनुदैर्ध्य है, तो प्रत्यास्थता गुणाक को यग प्रत्यास्यतागुणाक कहते हैं।

अनुदैर्ध्य प्रतिषत अनुदैर्थ विकृतियदि विकृति आयतन में हो, तो उसे आपन प्रत्यास्थता गुणांक (K) कहते हैं। अपरूपण विकृति (shear) के लिए इसे प्रता (7) कहते हैं।

 

10. सरल आवर्त गति

(Periodic Motion) एक निश्चित पच पर गति करती वस्तु जब एक निश्चित समय-अन्तराल के पश्चात् बार-बार अपनी पूर्व गति को दोहराती है, तो इस प्रकार की गति को कहते हैं।

(Oscillatory Motion) किसी पिंड की साध्य स्थिति के इधर-उधर गति करने को दोलन या काव्पनिक गति कहते हैं।

एकाएकदोन करने वाले कण का अपनी साम्य स्थिति के एक और जाना फिर साच्य स्थिति में आकर दूसरी और जाना और पुनः साम्य स्थिति में वापस लौटना एक दोकन (Time Period) एक दोलन पूरा करने को आवर्तकात कहते हैं।

(Frequency) करने वाली। जितना कम्पन करती है. उसे उसकी आवृति 5.1. मात्रक हर्ट्ज (Hertz) होता है।

यदि आवृति तथा आवर्तकार हो

n = 1/T

(Simple Harmonic Motion) वस्तु एक सरख रेखा पर मध्यमान स्थिति (Mean Position इधर-उधर इस प्रकार की गति करे कि वस्तु कारण स्थिति से वस्तु के विश्यापन के अनुक्रमानुपाती हो तथा यात्र दिज्ञा मध्यमाग स्थिति की ओर हो. तो उसकी गति गति कहलाती है।सरल आवर्त गति की विशेषताएँ

सरल आवर्त गति करने वाला कण से गुजरता है, तो। उस पर कोई 2. उसका त्वरण शून्य होता है। 4. गतिज ऊर्जा अधिकतम होती है। जब अपनी मध्यमान बस कार्य नहीं करता। वेग अधिकतम होता। स्थितिज ऊर्जा शून्य होसरल आवर्त गति करने वाला कण जब से गुजरता है. तो अपनी गति के अन्न विदु

1. उसका त्वरण अधिकतम होता है। 2. उस पर कार्य करने क प्रत्यानयन बछ अधिकतम होता है। गतिज ऊर्जा न्य है। स्थितिज ऊर्जा अधिकतम होती है। पेग शून्य होता।

सडक (Simple Pendulum) यदि एक भारहीन छम्बाई में न बढ़ने वाली डोरी के निचले सिरे से पदार्थ के कि गोल परन्तु भारी कण को छटकाकर डोरी को किसी दूढ आधा से लटका दें तो इस समायोजन को ‘सरख लोलक कहते हैं। दी लोलक (bob) को साम्य स्थिति से थोड़ा विस्थापित करके ड तो इसकी गति सरक आवर्त गति होती है।

सरत छोड़क का आवर्तकाल T – 2pi * sqrt(1/8)जहाँ, । डोरी की प्रभावी लम्बाई 8 गुरुत्वीय त्वरण

निष्कर्ष:

1. T* sqrt(T) s अर्थात् लम्बाई बढ़ने पर बढ़ जायेगा। पही कारण है कि यदि कोई लडकी झूला झूलते-झूलते खड़ी हो जाए तो उसका गुरुव केन्द्र ऊपर उठ जायेगा और प्रभावी लम्बाई घट जायेगी जिससे हु का आवर्तकाऊ घट जायेगा। अर्थात् झूला जल्दी-जल्दी दोहन करेगा।

2. आवर्तकाछ लोलक के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है. झूलने वाली लड़की की बगल में कोई दूसरी लड़की आका बैड जाए तो आवर्तकाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

T propto sqrt(T/8) 3. पानी किसी लोलक पड़ी को पृथ्वीर लख से ऊपर या नीचे

से जाया जाए ती घड़ी का आवर्तकाल (1) बढ़ जाता है, अपां यही सुस्त हो जाती है, क्योंकि पृथ्यी तल से ऊपर या नीचे जाने पर 8 का मान कम होता है।

 यदि लोलक पाही को उपग्रह पर से जाएँ तो यहाँ भारहीनता के 4 कारण x = 0 अतः घड़ी का आवर्तकात (7′) अनन्त हो जायेग अतः उपग्रह में बोल्क पड़ी काम नहीं करेगी।

गर्मियों में छोतक की उम्बाई (1) बढ़ जायेगी तो उसका आतंक T’ भी बढ़ जायेगा। अतः धड़ी सुस्त हो जायेगी। सर्दियों में (1) कम हो जाने पर भी कम हो जायेगा और लोक यही तेज धने।

चन्द्रमा पर लोलक पड्डी को ले जाने पर उसका आवर्तकाब जायेगा, क्योंकि चन्द्रमा पर का मान पृथ्ती के के मान का 1/6 गुना है।

 

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