बिहार बोर्ड 10th History Vvi solved Question answer 2025
10th Exam 12th Exam Bihar Board Exam Matric Exam

बिहार बोर्ड 10th History Vvi solved Question answer 2025

दक्षिण भारत के प्रमुख राजवं

पल्लव वंश।

 पाव वंश का संस्थापक सिंहविष्णु (575-600) था। इसकी राजधानी कीची (तमिलनाडु में कौचीपुरम) थी। वह वैष्णव धर्म का अनुयायी था।किरातार्जुनीयम के लेखक भारवि सिंहविष्णु के दरबार में रहते थे।

पल्लव वंश के प्रमुख शासक हुए क्रमशः महेन्द्र वर्मन प्रथम (600-630 ई.) नरसिंह वर्मन प्रथम (630-668 ई.), महेन्द्र वर्मन द्वितीय (668-670 ई. परमेश्वर वर्मन प्रथम (670-700 ई.), नरसिंहवर्मन-11 (700-728 ई.) नदिवर्मन II (730-800 ई.)

मतविकास प्रहसन की रचना महेन्द्रवर्मन ने की थी।महेन्द्रवर्मन शुरू में जैन-मतावलंबी था, परन्तु बाद में तमिल संत अप्पर के प्रभाव में आकर शैव बन गया था।

महाबलीपुरम् के एकाश्म मंदिर जिन्हें रथ कहा गया है, का निर्माण पस्तव राजा नरसिंह वर्मन प्रथम के द्वारा करवाया गया था। रथ मंदिरों की संख्या सात है। रथ मंदिरों में सबसे छोटा द्रोपदी रथ है जिसमें किसी प्रकार का अलंकरण नहीं मिलता है।

वातपीकोण्ड व महामल्ल की उपाधि नरसिंहवर्मन-1 ने धारण की थी। इसके शासन काल में चीनी यात्री हुएन सांग कौंची आया था।

 परमेश्वर वर्मन प्रथम शैवमतानुयायी था। उसने नौकादित्यु एकमलद् गणंजय अत्यन्तकाम् उग्रदण्ड गुणभाजन आदि की उपाधियाँ ग्रहण की थी। इसने मामल्लपुरम में गणेश मंदिर का निर्माण करवाया था। 

परमेश्वर वर्मन प्रथम विद्याप्रेमी भी था और उसने विद्याविनीत की उपाधि भी ली थी।अरबों के आक्रमण के समय पल्लयों का शासक नरसिहवर्मन-II था। उसने राजासिंह (राजाओं में सिंह), ‘जागमप्रियः (शास्त्रों का प्रेमी) और शंकरभक्त (शिव का उपासक) की उपाधियों धारण की। उसने काँची के कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण करवाया जिसे राजसिद्धेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। इसी मंदिर के निर्माण से द्रविड स्थापत्य कला की शुरुआत हुई। (महाबलिपुरम् में शोर मंदिर का निर्माण भी नरसिंहवर्मन-II ने किया)

 काँची के कैलाशनाथ मंदिर में पल्लव राजाओं और रानियों की आदमकद तस्वीरें लगी है।

दशकुमारचरित के लेखक दण्डी नरसिंहवर्मन-11 के दरवार में रहते थे।

काँची के मुक्तेश्वर मंदिर तथा बैकुण्ठ पेरूमाल मंदिर का निर्माण नन्दिवर्मन । ने कराया। प्रसिद्ध वैष्णव संत तिरुमहई अक्रवार नन्दिवर्मन-11 के समकालीन थे।

9वीं शताब्दी में चोल वंश पाल्न्डयों के ध्वंसावशेषों पर स्थापित हुआ। इस वंश के संस्थापक विजय (850-87) थे जिसकी राजधानी ताजाय (जीराजापूर) या तंजावर का वास्तुकार कुजमाया।

विजयालय ने वरऊंगी की उपाधि धारण की और निशुम्भसुदिनी देवी का मंदिर बनवाया। चोलों का स्वतंत्र राज्य आदित्य प्रथम ने स्थापित किया। पल्ल्यों पर विजय पाने के उपरान्त आदिश्य प्रथम ने कोहराम की उपाधि धारण की।

तक्कोलम के युद्ध में राष्ाकूट नरेश कृष्ण-III ने परांतक। को पराजित किया। इस युद्ध में परांतक का बड़ा तहका राजादित्य मारा गया।

राजराज प्रथम ने श्रीलंका पर आक्रमण किया। वहाँ के राजा महिम-V को भागकर श्रीलंका के दक्षिण जिला रोहण में शरण लेनी पड़ी।

 राजराज बीलंका के विजित प्रदेशों को चोत्र साम्राज्य का एक नया प्रांत मुन्धित (राजधामी पोल्न बनाया ।। राजराज ीय धर्म का अनुयायी था। इसने तंजौर में राजराजेश्वर का शिवमंदिर बनाया।

चोल साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार राजेन्द्र प्रथम के शासनकाल में हुआ है। बंगाल के पाल शासक महिपाल को पराजित करने के बाद राजेन्द्र प्रथम ने गंगैकोडचीत की उपाधि धारण की और नवीन राजधानी गरीकोड चोळपुरम् के निकट चोलगंगम नामक विशाल तालाब का निर्माण करवाया।बोल काल में भूमि के प्रकारवेन्नकणाई गैर ब्राह्मण किसान म्यामी की भूमि ।

ब्रह्मदय ब्राह्मणों को उपहार में दी गई भूमिন।सल्लाभीग किसी विद्यालय के रख-रखाव की भूमि ।देवदान वा तिरुनमटक्कानी मंदिर को उपहार में दी गई भूमि ।पलिच्चदम जैन सस्थानों को दान दी गई भूमि।

नोट : गजनी का सुल्तान महमूद राजेन्द्र प्रथम का समकालीन था।

राजेन्द्र-11 ने प्रफेसरी की एवं वीर राजेन्द्र ने राजकेसरी की उपाधि धारण की। चोल वंश का अंतिम राजा राजेन्द्र-III था।

चोलों एवं पश्चिमी चालुक्य के बीच शांति स्थापित करने में गोया के कदम्ब शासक जयकेस प्रथम ने मध्यस्य की भूमिका निभायी थी विक्रम चोल अभाव एवं अकाल से ग्रस्त गरीब जनता से राजस्व वसूल कर चिदंबरम् मंदिर का विस्तार करवा रहा था।

कत्तोतुग-11 ने चिदम्बरम् मंदिर में स्थित गोविन्दराज (विष्णु) की मूर्ति को समुद्र में फेंकवा दिया। कालान्तर में वैष्णव आचार्य रामानुजाचार्य ने उक्त मूर्ति का पुनरुद्धार किया और उसे तिरुपति के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित किया।

चोड प्रशासन में भाग लेने वाले उच्च पदाधिकारियों को पेरुन्दरम् एवं निम्न श्रेणी के पदाधिकारियों को शेरुन्दरन कहा जाता था। लेखों में कुछ उच्चाधिकारियों को उडनफूटम् कहा गया है जिसका अर्थ है-सदा राजा के पास रहने वाला अधिकारी।

 सम्पूर्ण चोल साम्राज्य 6 मंडलमों (प्रांत) में विभक्त था। मडलम् कोटम् में, कोट्टम् नाडु में एवं नाडु कई कुर्रमों में विभक्त था।नाडु की स्थानीय सभा को नादूर एवं नगर की स्थानीय सभा को नगरतार कहा जाता था।

बेल्लाल जाति के धनी किसानों को केन्द्रीय सरकार की देख रेख में नाडु के काम काज में अच्छा-खासा नियंत्रण हासिल था। उनमें से कई घनी भू-स्वामियों को चोल राजाओं के सम्मान के रूप में मुवेदवैलन (तीन राजाओं को अपनी सेवाएँ प्रदान करने वाला वेलन या किसान) अरइयार (प्रधान) जैसी उपाधियों दी उन्हें केन्द्र में महत्वपूर्ण राजकीय पद सौंपे।व्यानीय स्वशासन चोल प्रशासन की मुख्य विशेषता थी।

उर सर्वसाधारण लोगों की समिति थी. जिसका कार्य होता या सार्वजनिक कल्याण के लिए तालाबों और बगीचों के निर्माण हेतु गाँव की भूमि का अधिग्रहण करना।

सभा वा महासभा यह मूलतः अग्रहारों और ब्राह्मण बस्तियों की सभा थी. जिसके सदस्यों को पेरुमक्कत कहा जाता था। यह सभा वरियम नाम की समितियों के द्वारा अपने कार्य को संचालित करती थी। सभा की बैठक गाँव में मंदिर के निकट वृक्ष के नीचे या ताताय के किनारे होती थी। व्यापारियों की सभा को नगरम कहते थे।

घोष काल में भूमिकर उपज का 1/3 भागकर मंच में कार्यसमिति की सदस्यता के लिए रखो जाते थे, उन्हें मध्याय कहते थे।होना चाहिए, जहाँ से भू-राजस्व वसूला जाता है।

2. उनके पास अपना घर होना चाहिए।

3. उनकी उम्र 35 से 70 के बीच होनी चाहिए।

उन्हें प्रशासनिक मामलों की अच्छी जानकारी होनी चाहि ईमानदार होना चाहिए। यदि कोई पिछले तीन

सालों में किसी समिति का सध्य यह किसी और समिति का सदस्य नहीं बन सकता। * जिसने अपने या अपने संबंधियों के खाते जमा नहीं का चुनाव नहीं लड़ सकता।

उद्याह्मणों को दी गई करमुक्त भूमि को चतुर्वेटि मल दी गयी भूमि ब्रह्मदेय कहलाती थी।

चोल सेना का सबसे संगठित अंग था-पदाति मेना।चोल काल में कलजु सोने के सिक्के ये।तमिल कवियों में जयन्मांदर प्रसिद्ध कविः या, जो का राजकवि था। उसकी रचना है- कविगतुपर्णिकंबन, ऑट्टक्कुट्टन और प्रगदि को तमित माहिया।

पंप, पोन्न एवं रन्न कन्नड साहित्य का विरल कहा पर्सी ब्राऊन ने चंजीर के वृहदेश्वर मंदिर के विमान को वास्तुकला का निकष माना है। चोलकालीन नटराज चोल कला का सांस्कृतिक मार या निचोड़ कहा जाता है

चोल कांस्य प्रतिमाएँ संसार की सबसे उत्कृष्ट कास्य प्रष् गिनी जाती हैं।शैव सन्त इसानशिव पंडित राजेन्द्र के गुरु थे।चोत्रकाल (10थीं सदी) का सबसे महत्वपूर्ण बन्दरगाहक बहुत बड़ा गाँव, जो एक इकाई के रूप में शासित किया या, तनियर कहलाता था।

 उत्तरमेखर शिलालेख, जो सभा-संस्था का विस्तृत वर्णन करता है, परांतक प्रथम के शासनकाछ से संबंधित है।

 चोलों की राजधानी कालक्रम के अनुसार श्री-पुर गंगैकोड, चोलपुरम् एवं कोची।

 चोल काल में सड़कों की देखभाल बगान समिति काती मेंएक चोलकाल में आम वस्तुओं के आदान-प्रदान का आधारचोल काल के विशाख व्यापारी समूह निम्न ये एवं मनिग्रामम् । विष्णु के उपासक अलवार व शिव के उपासक नयना ह।

 राष्ट्रकूट राजवंश का संस्थापक दन्तिदुर्ग (752) वे कर्नाटक के चालुक्य राजाओं के अधीन थे। इस मनकिर या मान्यखेत (वर्तमान मालखेड़, शोलापुर के निका

राष्ट्रकूट यश के प्रमुख शासक पे कृष्ण प्रथम, पुर तृतीय, अमोघवर्ष, कृष्ण-II. इन्द्र-III एवं कृष्ण-II -एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण कृष्ण प्रथमने का

 युष राष्ट्रकूट वंश का पहला शासक या. जिसने इन अधिकार करने हेतु त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया नरेश वत्सराज एवं पाल नरेश धर्मपाल को पराजित किय

ध्रुव को ‘धारावर्ष’ भी कहा जाता था।गोविन्द-III ने त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेकर चक्रायुद्ध धर्मपाल तथा प्रतिहार वंश के शासक नागमको प

पल्लव, पाण्ड्य, केरल व गंग शासकों के संप को दिय किया।

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