Matric Exam
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Matric Exam 10th Vvi Question बिहार बोर्ड महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर हिदी देखें।

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• मुद्रा का वर्गीकरण मुख्यतः पाँच सागों में किया जाता है

1. पूर्ण काय मुद्रा (Full Bodled Money):- मुम र अकिंत मूल्य उसके वस्तु मूल्य के बराबर होते हैं तो उसे पूर्ण) पूर्ण काय मुद्रा सिक्कों के रूप में प्रायः होती है। अंग्रेजी शासनकाल से चलने वाला चाँदी का एक रूपया का सिक्का पूर्ण काय मुद्रा था।

2. प्रतिनिधि पूर्ण काय मुद्रा (Representative full Bodied Money) (प्रतिनिधि पूण काय मुद्रा के अंतर्गत) कागजी नोट आते हैं जिसे सरकारी जारी करती है। ये नोट पूर्ण काय मुद्रा का प्रतिनिधित्व करता है।

3. साख मुद्रा) (Credit Money)- (साय्य मुद्रा वह मुद्रा है जिसका मौद्रिक मूल्य उसके वस्तु मूल्य से काफी अधिक (होता है।

4. करेंसी मुद्रा (Currency Money)- (यह वह मुद्रा है जो नोटों और सिक्का के रूप में प्रचलन में होता है। इस मुद्रा को स्वीकार करना कानूनन रूप से आवश्यक है।

5. बैंक मुद्रा (Bank Money)- बैंक मुद्रा से तात्पर्य बैंकों द्वारा किए गये साख निर्माण से है। बैंक इस साख का निर्माण (लोगों को रूपया उधार देकर करते हैं

6. (प्रामाणिक मुद्रा) (Standard Money)- (प्रामाणिक मुद्रा उस मुद्रा को कहते हैं जिसका सरकार या मौद्रिक नीति के (आदेश द्वारा अर्थव्यवस्था के परिचालन होता है। इसी के प्रयोग द्वारा सरकार अपने दायित्वों का पूरा करती है।

मुद्रा के अन्य प्रकार

6. प्लास्टीक मनीः (विभिन्न बैंक अपना विनीय संस्था द्वारा जारी डेविट कार्ड तथा क्रेडिट कार्ड को स्टेक म कहा जाता है)

डेबिट कार्ड (Debit Card)- (डेविट कार्ड बैंक के ग्राहक को उसकी बैंक में जमा राशि के बदले में कार (किया जाता है)

क्रेडिट कार्ड) Credit Card)- (क्रेडिट कार्ड बैंक अपने उन ग्राहकों को जारी करता है जिनकी साख बैं (की नजरों में बहुत अच्छी है। क्रेडिट कार्ड प्राप्त करने के लिए बैंक खातों में रूपना होना जरूरी नहीं है।

7. नजदीकी मुद्रा (Near Money)- (वह संपत्ति जिसे आमानी तथा कम समन में मुझ में परिवर्तित किया जा सकता है नजदीकी मुद्रा कहलाता है।

उदाहरण: सोना, हीरा, चाँदी आदि।

8. गर्म मुद्रा (Hot Money)- (वह मुद्रा जिसके विनिमय दर गिरने की संभावना हमेशा बनी रहती है तथा जिसमें सीम्र पलायन कर जाने की प्रवृत्ति हो, उसे गर्म मुद्रा कहते हैं।

9. (दुर्लभ मुद्रा) (Hard Currency)- अंतराष्ट्रीय बाजार में जिस मुद्रा को आपूत्ति, मौग के अनुसार कम होती है उसे) दुर्लभ मुद्रा कहते हैं। जैसे डॉलर, पौंड, गुरो

10. सुलभ मुद्रा (Soft Currency)- मितराष्ट्रीय बाजार में जिस मुद्रा को आपत्ति, माँग के अपेक्षा अधिक होती है या वह (मुद्रा जो अंतराष्ट्रीय बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जादा है सलम मुद्रा कहलाता है।

11. कॉशन मनी (Caution Money) (किसी भी संविदा (ठेका) और दायित्व को पूर्ण करने के लिए जमानत के तौर (पर मांगी जाने वाली राशि की कॉशन मनी कहते हैं।

मुद्रा के कार्य

(Function of Money)

मुद्रा के प्राथमिक कार्य-

1. मुद्रा का प्रमुख कार्यशी विनिमय का माध्यम होना। मुद्रा क्रय तथा विकृय दोनों में ही एक मध्यस्य का कार्य करता

2. मुद्रा का दूसरा प्र । प्रमुख कार्य है वस्तु तथा सेवाओं के मूल्य का मापन करना।। जा सकता है तथा व्यक्त कियाshan मुद्रा के द्वारा सभी वस्तु के मूल्य को मापा

मुद्रा के द्वितीयक कार्य-

1.

मुद्रा के फलस्वरूप स्थगित भुगतान तथा उधार लेन देन की प्रक्रिया सरल हो जाती है।

2. मुद्रा मूल्य संचय का कार्य करती है। मूल्य संचय का तात्पर्य आय के उस हिस्से से है जिन्हें व्यक्ति भविष्य के लिए बचा कर रखता है।

3. मुद्रा के कारण पूँजी में गतिशीलता आती है। मुद्रा के रूप में पूँजी को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तथा एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजना आसान हो जाता है।

मुद्रा के आकस्मिक कार्य-

1. वर्तमान समय से विश्व के सभी देशों में चैक, ड्राफ्ट का प्रचलन है। इन साख पत्रों का आधार मुद्रा ही है।

2. मुद्रा के रूप में धन खर्च करके एक उपभोक्ता अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करता है वहीं उत्पादक अधिकतम लाभ को प्राप्त करता है।

3. मुद्रा के प्रचलन होने से किसी देश के राष्ट्रीय आय का मापन आसान हो जाता है। वस्तु विनिमय प्रणाली में राष्ट्रीय आय को मापना संभव नहीं है।

4. मुद्रा उपभोक्ता को निर्णय लेने में सहायता करते हैं। अर्थशास्त्री प्रो. ग्राहम के अनुसार मुद्रा के रूप में धन संचय करके उपभोक्ता परिस्थितियों के अनुसार वस्तुओं को खरीदने के संबंध में सही निर्णय ले सकता है।

अर्थशास्त्री प्रो. कोलर्बन तथा पाल इन्जिंग ने मुदा के सभी कार्यों को कंवल दो भागों में बाँटा है-

1. (अगत्यात्मक कार्य (Static function)- अगत्यात्मक कार्य में तात्पर्य मुद्रा के स्थिर तथा निष्क्रिय कार्यों से है। मुद्दा के ये कार्य अर्थव्यवस्था का संचालन करते हैं, उसमें गति पैदा करने में कोई सहायता नहीं करते। अगत्यात्मक कार्य के अंतर्गत मुद्रा के प्राथमिक तथा द्वितीयक कार्य शामिल हैं।

2. गत्यात्मक कार्य (Dynamic Function)- इसमें मुद्रा के उस कार्य को मम्मीलित किया गया है जो अर्गणतस्या में गति प्रदान करते हैं।

मुद्रा के प्रमुख गत्यात्मक कार्य-

(1) मुद्रास्फीति व अवस्फीति जैसे स्थिति को दूर करना

(ii) अंतराष्ट्रीय व्यापार के विस्तार में सहायता

(iii) मौद्रिक नीति का प्रयोग करके अधिकतम सामाजिक कल्याण को प्राप्त करता

(iv) मानवीय तथा प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग संभव बनाना।
अर्थशास्त्री प्रो. कोलर्बन तथा पाल इन्जिंग ने मुदा के सभी कार्यों को कंवल दो भागों में बाँटा है-

1. (अगत्यात्मक कार्य (Static function)- अगत्यात्मक कार्य में तात्पर्य मुद्रा के स्थिर तथा निष्क्रिय कार्यों से है। मुद्दा के ये कार्य अर्थव्यवस्था का संचालन करते हैं, उसमें गति पैदा करने में कोई सहायता नहीं करते। अगत्यात्मक कार्य के अंतर्गत मुद्रा के प्राथमिक तथा द्वितीयक कार्य शामिल हैं।

2. गत्यात्मक कार्य (Dynamic Function)- इसमें मुद्रा के उस कार्य को मम्मीलित किया गया है जो अर्गणतस्या में गति प्रदान करते हैं।

मुद्रा के प्रमुख गत्यात्मक कार्य-

(1) मुद्रास्फीति व अवस्फीति जैसे स्थिति को दूर करना।

(n) अंतराष्ट्रीय व्यापार के विस्तार में सहायता

(m) मौद्रिक नीति का प्रयोग करके अधिकतम सामाजिक कल्याण को प्राप्त करता

(iv) मानवीय तथा प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग संभव बनाना।

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