1. वहेज प्रथा एक अभिशाप
विचार बिन्दु- 1. परंपरा और रूढ़ि, 2. भारतीय समाज की विदूपता 3. बड़ती माँगे और नववधू पर अत्याचार, 4. दहेज विरोधी कानून, 5. कैसे छुटकारा पाएँ।
पायरा और रुदिरहेका अर्थ होता हैोपाल। इस चैट या सौगात की परम्परा भारतीय रीति-भीति में बहुत पुरानी है। प्राचीन इंचों के अनुसार विवाह के समय कन्या के माता-पिता अपनी सामने और क्रित के अनुरूप कन्या के प्रति वात्सल्य के प्रतीक के रूप में कुछ उपहार भेंट कर दिया करते थे। यानी रहेज प्रथा थी पर आज के समान विवाह पूर्व कोई शर्त नहीं थी। यह अपनी सामर्थ्य और उत्साह के अनुसार देते थे। यह आज के तात बाध्यकारी नहीं था।
भारतीय समाज की विद्रूपता-याँ तो हमारे देश में कई ऐसी प्रथाएँ प्रचलित हैं जिनके भीतर न जाने कितनी बुराइयाँ भरी पड़ी हैं, लेकित समाज में कोद में खाज की तरह जो कुप्रथा सबसे घृणित, त्याज्य एवं शर्मनाक है, वह है-दहेज प्रथा। इस कलंकित कुप्रथा ने हमारे पारिवारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में सड़ांध की ऐसी विषैली स्थिति उत्पन्न कर दी है कि हमारा संपूर्ण जीवन इससे विषाक्त हो गया है। इससे हमारे लोक जीवन की सारी मर्यादाएँ खंडित हो गयी हैं। हमारे सामाजिक जीवन के पारंपरिक आदशों के सामने प्रश्न चिह सा लग गया है। यही कारण है कि बहुविध राजनैतिक, धार्मिक, आधिक और राष्ट्रीय समस्याओं
की भाँति यह भी एक गंभीर समस्या बन गयी है। बढ़ती माँगे और नववधू पर अत्याचार आज दहेज प्रथा के भयंकर कुपरिणाम
चतुर्दिक तांडव कर रहे हैं। इस कुप्रथा ने आज हमारे पारिवारिक और सामाजिक जीवन में ललनाओं की, बालाओं की, बहने और बेटियों की स्थिति बड़ी ही दुर्बल और शोचनीय बना दी है। इस दहेज प्रथा के कारण न जाने कितनी भारतीय नववधू को अपने क्रूर हाथों से गला घोंट दिया है। दहेज के प्रभाव में लड़की अयोग्य वर को सौंप दी जाती है। द्वन्द्व और संघपों के बाद तलाक की नौबत आ जाती है। दहेज के बढ़ती माँगों के कारण माता-पिता ऋण के बोझ से दब जाते हैं। इस तरह दहेज मानव जाति के लिए एक अभिशाप है।
दहेज विरोधी कानून-दहेज प्रथा के उन्मूलन के लिए 1961 ई० में दहेज-निरोधक अधिनियम बनाया गया परंतु जनता के पूर्ण सहयोग के अभाव में यह कानून के पन्नों तक सीमित रहा। इसके उन्मूलन के लिए समाज में जागृति परम आवश्यक है। इसके लिए शिक्षित और सभ्य समाज को आगे आना चाहिए। कैसे छुटकारा पाएँ दहेज प्रथा की कालिमा की जाया दिन व दिन गहरी होती जा रही है। परिणामस्वरूप घर की लक्ष्मी तिरस्कार की वस्तु समझी जाने लगी है।
इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि समाज में बेटा-बेटी के अंतर को मिटाना होगा। समाज में बेटी को शिक्षित कर उसे आगे बढाने का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए। दहेज प्रथा के कुचक्र से बचने के लिए समाज और सरकार को साथ चलना होगा। वर्तमान सरकार द्वारा बिहार में दहेज प्रथा उन्मूलन के लिए प्रभावी और सख्त प्रावधान किये गये हैं। समाज में जागृति लाने हेतु दहेज प्रथा के विरोध में 21 जनवरी, 2018 को मानव श्रृंखला का निर्माण किया गया था। यदि समाज सरकार के इस भावना का आत्मसात करे तो निश्चित रूप से समाज को इस कलंकित प्रथा से मुक्ति मिल सकती हैं।
2.मेरा प्रिय लेखक विचार बिन्दु- 1. भूमिका, 2. लेखक की भूमिका-हिन्दी साहित्य के इतिहास में ऐसे अनेकानेक लेखक उत्पन्न हुए विशेषता, 3. निष्कर्ष
चना की है, वह इतनी वर्तन निश्चित समय पर का होना, पेड़-पौधों पर निश्चित समय पर होते एक निश्चित नियंत्रण या
तथा ‘शासन’। इसका यमों का पालन करना जीवन कहा गया है।
प्रथम सोपान है। यह बन का विशेष महत्त्व नने घर-परिवार तथा जाए, तो वह जीवन – का सभ्य नागरिक श को उन्नत बनाने
नता देश के लिए उद्दंडता दिखाना, कराना, रोकने पर बना टिकट यात्रा क नमूने हैं। अतः या जाना चाहिए। विष्य अंधकारमय जाता है। देश परिवर्तन किया गरिक के रूप इ, जिसमें सत्ता यों का निर्धा त होकर र्तव्य
अपनी महान रचनाओं के कारण अमर हो गए हैं। उनमें एक नाम प्रेमचन्द भी है। उनकी कहानियाँ और उपन्यास बहुत ही सरल, स्वाभाविक और मर्मस्पर्शी है। मुझे अपनी भाषा हिन्दी के महान लेखक प्रेमचन्द जितने पसंद आए उतना कोई अन्य नहीं। प्रेमचन्दजी ने अपनी कहानियों और उपन्यासों द्वारा साहित्य के क्षेत्र में वही काम किया जो गाँधी जी ने भारतीय राजनीति में किया है। देश के इतिहास में जैसे गाँधी युग है, साहित्य के इतिहास में उसी प्रकार प्रेमचन्द युग है।
लेखक की विशेषता प्रेमचन्द हिन्दी के युग प्रवर्तक कहानीकार माने जाते हैं। पहले वे से उर्दू में लिखते थे। उर्दू में लिखा हुआ उनका नबाव राय के नाम से कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’ 1907 ई० में प्रकाशित हुआ था। कालान्तर में वे हिन्दी में प्रेमचन्द नाम से लिखने लगे और उनका यह नाम कथा साहित्य में अमर हो गया। उनकी पहली हिन्दी कहानी पंच परमेश्वर सन् 1916 में और अंतिम ‘कफन’ 1936 ई० में प्रकाशित हुई। मुंशी प्रेमचन्द ने अपने जीवन काल में लगभग 300 कहानियों की रचना की जो मानसरोवर के आठ खण्डों में प्रकाशित हुई। इनकी प्रमुख कहानियाँ हैं-पूस की रात, शतरंज के खिलाड़ी, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, नमक का दारोगा इत्यादि।
निष्कर्ष-प्रेमचन्द ने हिन्दी कथा साहित्य को मनोरंजन के स्तर से साहित्य
को ऊपर उठाकर जीवन के साथ जोड़ने का काम किया। प्रेमचन्द की रचना-दृष्टि, विभिन्न साहित्य रूपों में अभिव्यक्त हुई। वह बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार थे। इनकी रचनाओं में इतिहास बोलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन-साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया है। मुंशी प्रेमचन्द भारतीयता के ऐसे अमर नायक हैं, जिन्होंने अपनी लेखनी से उस समय के समाज में फैली कुरीतियों को अपनी रचनाओं में चित्रित कर उन्हें दूर
3.भ्रष्टाचार विचार बिंदु। भूमिका, 2. भ्रष्टाचार के कारण, 3. भ्रष्टाचार का स्वरूप।
भूमिका–अपने निहित स्वार्थ के कारण जब हमारा आचरण घाट हो जाता है, तब भ्रष्टाचार का जन्म होता है। भ्रष्टाचारी व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए कलंक है। यह आज एक वैश्विक समस्या बनकर हमें कलंकित कर रहा है। यह हमारी व्यवस्था को चौपट कर मानव समाज को पतोन्मुख बना रहा है।
भ्रष्टाचारी के कारण- भ्रष्टाचार के कई कारण हैं। हमारी भोगलिप्सा और ज्यादा से ज्यादा अर्थसंग्रह भ्रष्टाचार का मूल कारण है। इस लिए वह नैतिक और अनैतिक साधनों का प्रयोग कर समाज का शोषण करता है। यह भ्रष्टाचार शिक्षा, व्यापार, राजनीति, खेलकूद, शासन व्यवस्था, सब जगह दिखाई देता है।
भ्रष्टाचार का स्वरूप- आज समाज के हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार के दुष्परिणाम नजर आते हैं। विद्यार्थी परीक्षा में नकल करते हैं, कार्यालय के बाबू घूस लेते हैं। हमारे नेता बड़े-बड़े घोटाले करते हैं और न्याय और नीति के रखवाले पैसे लेकर गलत फैसले करते हैं। जो जितना ओहदेवाला वह उतना भ्रष्ट और पतित है। समाज में न तो नैतिक मूल्य बच गया है और न जिम्मेदारी बच गयी है। भ्रष्टाचार ही आज का शिष्टाचार बन गया है।
भ्रष्टाचार निवारण के उपाय-भ्रष्टाचार से बचने के लिए नैतिक मूल्यों
को बढ़ावा देना होगा। भौतिक ऐश्वर्य और भोगवाद से हटकर समाज-सेवा और मानव-कल्याण की भावना जागृत करनी पड़ेगी। जब तक हमारे भीतर राष्ट्रसेवा और मानव कल्याण का भाव नहीं पैदा होगा, तबतक भ्रष्टाचार नहीं मिटेगा।
निष्कर्ष निस्संदेह भ्रष्टाचार समाज के लिए कलंक है। इस कलंक से मुक्ति के लिए आत्मानुशासन, जिम्मेदारी और वफादारी का भाव पैदा करना होगा। भ्रष्टाचार से मुक्ति
हमारा राष्ट्रीय संकल्प उभरे, यही हमारी मंगलकामना है।