अकबर का उत्तराधिकारी महुआ जी 24 आफ्टूबर, 1605 की उपाधि बाग कर गद्दी पर बैठा।जहाँगीर का जन्म 30 अगस्त 1569 में हुआ था।
अकबर ने अपने पुत्र का नाम सजीम सूफी के नाम पर रखा। जहाँगीर को न्याय की जजीर के लिए पाय किया जाता है। यह जंजीर सोने की बनी थी, जो आगरा के किले के शाहबुर्ज एवं यमुना-तट पर स्थित पत्थर के खन्मे में लगवाई हुई थी। जहाँगीर द्वारा शुरू की गई तुलनामक आया को पूरा करने का श्रेय बीतांबर वां को है।
जहाँगीर के सबसे बड़े पुत्र खुसरो ने 1606 ई. में अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। खुसरो और जहाँगीर की सेना को बीच युद्ध जालंधर के निकट पैरावल नामक मैदान में हुआ। खुसरी को पकड़कर कैद में डाल दिया गया।
खुसरो की सहायता देने के कारण जहाँगीर ने सिक्खों के 5वें गुरु अर्जुनदेव को फाँसी दिलवा दी। खुसरो गुरु से गोइयवाल में मिाल था। अहमदनगर के वजीर मलिक अन्दर के विरुद्ध सफलता से खुश होकर जहाँगीर ने धुरंम को शाहजहाँ की उपाधि प्रदान की। 1622 ई. में कंधार मुगलों के हाथ से निकल गया। शाह अब्बास ने इस पर अधिकार कर लिया।
नूरजहाँ ईरान निवासी मिर्जा गयास बेग की पुत्री नूरजहाँ का वास्तविक नाम मेहना था। 1594 ई. में नूरजहाँ का विवाह अलीकुल्ली बेग से सम्पन्न हुआ। जहाँगीर ने एक शेर मारने के कारण अली कुली वेग को शेर अफगान की उपाधि प्रदान की। 1607 ई. में शेर अफगान की मृत्यु के बाद मेहरुन्निसा अकबर की विधवा सलीमा बेगम की सेवा में नियुक्त हुई। सर्वप्रथम जहाँगीर ने नवरोज त्योहार के अवसर पर मेहरुन्निसा को देखा और उसके सौदर्य पर मुग्ध होकर जहाँगीर ने मई, 1611 ई. में उससे विवाह कर लिया। विवाह के पश्चात् जहाँगीर ने उसे नूरमहल एवं नूरजहाँ की उपाधि प्रदान की। नूरजहाँ के सम्मान में जहाँगीर ने चाँदी के सिक्के जारी किए।
जहाँगीर ने गियास बेग को शाही दीवान बनाया एवं उद-दौसा की उपाधि दी। जहाँगीर के शासनकाल में ईरानियों को उच्च पद प्राप्त हुए।लाडली बेगम शेर अफगान एवं मेहरुन्निसा की पुत्री थी, जिसकोशादी जहाँगीर के पुत्र शहरयार के साथ हुई थी।
नूरजहाँ की माँ अस्मत बेगम ने गुलाब से इस निकालने की विधि खोजी थी।हावत ही ने झेलम नदी के तट पर 1626 ई. में जहाँगीर, नूरजहाँ एवं उसके भाई आसफ खाँ को बन्दी बना लिया था।जहाँगीर के पाँच पुत्र थे। खुसरो, परवेज, 4. शहरयार, 5 जहाँदार ।
28 अक्टूबर, 1627 को भीमनार नामक स्थान पर जहाँगीर की मृत्यु हो गयी। उसे द (लाहौर) में रावी नदी के किनारे दफनाया गया
मुगल चित्रकला अपने चरमोत्कर्ष परीर के शासनकाछ में पहुंची। जहाँगीर के दरबार के प्रमुख चित्रकार थे-आगा रजा अपुल हसन, मुहम्मद नासिर, मुहम्मद मुराव, उस्ताद मंसूर, विज्ञमदास मनोहर एवं गोवर्धन, फारुख बेग, दौलत।जहाँगीर ने आगा रजा के नेतृत्व में आगरा में एक की स्थापना की।
उस्ताद मंसूर एवं अबुल हसन को जहाँगीर ने क्रमशः उस एवं नादिरुन्जमा की उपाधि प्रदान की। इसने संस्कृत के कवि जगन्नाय को पडिक की उपाधि दी।जहाँ ने अपनी आत्मकथा में किया कि कोई भी विचा किसी भूतक व्यक्ति या जीवित व्यक्तिद्वारा बनाया गया हो. में देखते ही तुरत बता सकता है कि यह किस चित्रकार की कृति है। यदि किसी चेहरे पर औष किसी एक चित्रकार ने भी किसी और ने बनाई हो. तो भी यह जानता हूँ कि भत्र किसने बनायी है। किसने और
जहाँगीर के समय को जाता है।इभाद-य-दौला का मकबरा 1626 ई. मेंदूर बनवाया।
कालीन वास्तुकला के अन्तर्गत निर्मित यह प्रथम ऐसी इमारत है जो पूर्णरूप से बेदाग सफेद संगमरमर से निर्मित है। सर्वप्रथम इसी इभारत में वितपुरा नामक जडाऊ काम किया गया।
अशोक के कौशाची स्तम्भ (वर्तमान में प्राण पर समुहगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति तथा जहाँगीर का लेख उत्कीर्ण है।
जहाँगीर के मकबरा का निर्माण दूरों ने करवाया था।जहाँगीर के शासनकाल में नज विलियमच एवं एमी जैसे यूरोपीय यात्री आए थे। जहाँगीर के बाद सिहासन पर शाहजहाँ बैठा।जोधपुर के शासक मोटा राजा उदय सिंह की पुत्री के गर्भ से 5 जनवरी, 1592 ई. को खुर्रम (हजहाँ) का जन्म लाहौर में हुआ था। 1612 ई. में खुर्रम का विवाह आसफ खाँ की पुत्री आजुमन्दनो से हुआ जिसे शाहजहाँ ने मतिका ए-जमानी की उपाधि प्रदान की। 7 जून 1631 ई. में प्रसव पीड़ा के कारण उसकी मृत्यु हो गयी।
4 फरवरी, 16:28 ई. को शाहजहाँ आगरा में अबुल मुजफ्फर शहाबुद्दीन मुहम्मद साहिब किरन-ए-सानी की उपाधि प्राप्त कर सिंहासन पर बैठा।
शाहजहाँ ने आसफ खाँको पद एवं महावत खाँ को नखाना की उपाधि प्रदान की।
इसने नूरजहाँ को दो लाख रुपये प्रतिवर्ष की पेंशन देकर लाहौर जाने दिया, जहाँ 1645 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी।
अपनी बेगम मुमताज महल की याद में शाहजहाँ ने ताजमहल का निर्माण आगरा में उसकी कब्र के ऊपर करवाया। ने ताजमहल की रूपरेखा तैयार की थी।ताजमहल का निर्माण करनेवाला मुख्य स्थापत्य कलाकार उतार असद अहीरी था।
मयूर सिंहासन का निर्माण शाहजहाँ ने करवाया था। इसका मुख्य कलाकार के बादसी था। बादशाह के सिंहासन के पीछे पित दुग के जड़ाऊ काम की एक श्रृंखला बनाई गयी थी, जिससे पौराणिक यूनानी देवता आर्कियस को वीणा बजाते हुए चित्रित किया गया है।
शाहजहाँ के शासनकालको कहा जाता है। शाहजहाँ द्वारा बनवायी गयी प्रमुख इमारतें हैं दिल्ली का काल किला, दीवाने आम, दीवाने खास, दिल्ली का जामा मस्जिद आगरा का मोती महिजय ताजमहल एवं लाहौर किला स्थित शीश महल आदि।
केराको तहका पूर्ववत माना जाता है। शाहजहाँ ने 1632 ई. में अहमदनगर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
शाहजहाँ ने 1638 ई. में अपनी राजधानी को आपसे दिखाने के लिए यमुना नदी के दाहिने तट पर की नींव डाली।आगरे के जामा मस्जिद का निर्माण ने करवाई। की पुत्री जहाँआराशाहजहाँ के दरवार के प्रमुख चित्रकार एवं और
माहजहाँ के दरबार में वशीधा मिव एवं हरिनारायण मिश्र नाम के दो संस्कृत के कवि थे
शाहजहाँ के संगीतकी उपाधि एवं हिन्दी का कवि भी था को महाकविराय की उपाधि से सम्मानित किया।
शाहजहाँ के पुत्रों में दारा शिको सर्वाधिक विद्वान था। इसने भगवद्गीता, योगवशिष्ठ उपनिषद् एवं रामायण का अनुवाद फारसी में करवाया। इहारहस्य) नाम सेका अनुवाद करवाया था। दारा शिको काहितरी सिलसिले के मुल्ला बसी का शिष्य था।शाहजहाँ ने दिल्ली में एक कॉलेज का निर्माण एवं दात बा नामक कॉलेज की मरम्मत करायी।
सितम्बर 1657 ई में शाहजहाँ के गंभीर रूप से बीमार पड़ने और मृत्यु का अफवाह फैलने के कारण उसके पुत्रों के बीय उत्तराधिकार का युद्ध प्रारंभ हुआ। उस समय शूजा बगाल, मुराद गुजरात एवं औरंगजेब दक्कन में था।
15 अप्रैल, 1658 ई. में दारा एवं औरंगजेब के बीच का युद्ध हुआ। इस युद्ध में द्वारा की पराजय हुई।
सामूक 29 मई, 1658 ई कोदारा एवं औरंगजेब के बीच हुआ। इस युद्ध में भी द्वारा की हार हुई। उत्तराधिकार का अन्तिम युद्धदेवराईकी में मार्च 1659 ई. को हुआ। इसमें दारा के पराजित होने पर उसे इस्लाम धर्म की अवहेलना करने के अपराध में 30 अगस्त, 1659 ई. को हत्या कर दी गई। दारा शिकोह ने अपना निर्वासित जीवन अलवर (राजस्थान) के कबाड़ी किता में बिताया। इस किला का निर्माण जय सिंह ने किया था।
(king of Lofty fortune) के रूप में दारा शिकोह जाना जाता है।
8 जून, 1658 को औरगजेब ने शाहजहाँ को बड़ी बना लिया। आगरा के किले में अपने कैदी जीवन के आठवें वर्ष अर्थात 22 जनवरी, 1666 को 74 वर्ष की अवस्था में शाहजहों की मृत्यु हो गयी।
औरंगजेय (1658-1707 ई.)
औरंगजेब का जन्म 24 अक्टूबर 1618 ई. को (गुजरात) नामक स्थान पर हुआ था।
औरंगजेब के बचपन का अधिकांश समय के पास बीता। 18 मई, 1637 को फारस के राजघराने की के साथ औरंगजेब का निकाह हुआ।आगरा पर कब्जा कर जल्दबाजी में औरंगजेब ने अपना राज्याभिषेक
की उपाधि से 31 जुलाई 1658 ई. को करवाया। देवराई के युद्ध में सफल होने के बाद 15 मई 1659 को औरंगजेब ने दिल्ली में प्रवेश किया और शाहजहाँ के शानदार महल में 5 जून, 1659. को दूसरी बार राज्याभिषेक करवाया।औरंगजेब के गुरु थे।
औरंगजेब मुनी धर्म को मानता था, उसे पर कहा जाता था।जय सिंह एवं शिवाजी के बीच पुरन्दर की संथि 22 जून, 1665 ई. को सम्पन्न हुई।
मई, 1666 ई. को आगरा के किले के दीवान-ए-आम में औरंगजेब के समक्ष शिवाजी उपस्थित हुए। यहाँ शिवाजी को कैद कर भवन में रखा गया। इस्लाम नहीं स्वीकार करने के कारण सिक्खों के वें औरंगजेब ने 1675 ई. में दिल्ली में करवा दी थी।
औरंगजेब ने 1679 ईमेको पुनः लागू किया।औरंगजेब में बीची का मकबरा का निर्माण 1679 ई. में औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में करवाया।
1685 ई. में बी एवं 1687 में को औरंगजेब ने मुगल साम्राज्य में मिला किया।मन्न एवं असे था। नामक ब्राह्मणों का संबंध