1861ई का भारत परिषद् अधिनियम इस अधिनियम की विशेषताएँ है- गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद् का विस्तार किया गया, 2. विभागीय प्रणाली का प्रारंभ हुआ (लार्ड कैनिग द्वारा), गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गयी। ऐसे आध्यादेश की अवधि मात्र महीने होती थी। 4. गवर्नर जेनरल को बंगाल, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में विधान परिषद् स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गयी। इसके द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई। वायसराय कुछ भारतीय को विस्तारित परिषद् में गैर सरकारी सदस्यों के रूप में नामांकित कर सकता था।
नोट: 1862 ई. में लॉर्ड कैनिंग ने तीन भारतीयों बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधानपरिषद् में मनोनीत किया।
1873 ई. का अधिनियम इस अधिनियम द्वारा यह उपबन्ध किया गया कि ईस्ट इंडिया कंपनी को किसी भी समय भंग किया जा सकता है। 1 जनवरी 1884 ई. को ईस्ट इंडिया कंपनी को औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया।
शाही उपाधि अधिनियम, 1876 ई. इस अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल की केन्द्रीय कार्यकारिणी में छठे सदस्य की नियुक्ति कर उसे लोक निर्माण विभाग का कार्य गीपा गया। 28 अप्रैल, 1876 ई. को एक घोषणा द्वारा महारानी विक्टोरिया को भारत की माझी घोषित किया गया।
1892 ई. का भारत परिषद् अधिनियम इस अधिनियम की मुख्य विशेताएँ हैं। अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली की शुरुआत हुई, 2. इसके द्वारा राजस्य एवं व्यय अथवा बजट पर बहस करने तया कार्यकारिणी से प्रश्न पूछने की शक्ति दी गई।
1909 ई. का भारत परिषद् अधिनियम (माले मिन्टो मुयार): 1. पहली बार मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक् प्रतिनिधित्व का उपबन्ध किया गया। इसके अन्तर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे (भारत सरकार अधिनियम के तहत् पहली बार विधाविका में कुछ निर्वाचित प्रतिनिधित्व की मंजूरी। इस प्रकार इस अधिनियम ने सांप्रदायिकता को वैधानिकता प्रदान की और लॉर्ड मिंटो को साम्प्रदायिक निर्वाचन के जनाक के रूप में जाना गया। 2. भारतीयों को भारत सचिव एवं गवर्नर जेनरल की कार्यकारिणी परिषदों में नियुक्ति की गई। 3. केन्द्रीय और प्रान्तीय विधान परिषदों को पहली बार बजट पर वाद विवाद करने, सार्वजनिक हित के विषयों पर प्रस्ताव पेश करने, पूरक प्रश्न पूछने और मत देने का अधिकार मिला। 4. प्रान्तीय विधान परिषदों की संख्या में वृद्धि की गयी। 5. सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा पायसराय की कार्यपालिका परिषद् के प्रथम भारतीय सदस्य बने। उन्हें विधि सदस्य बनाया गया। 6. इस अधिनियम के तहत प्रेसीडेंसी कॉपोरेशन, चैंबर्स ऑफ कॉमर्स, विश्वविद्यालयों और जमींदारों के लिए अलग प्रतिनिधित्य का प्रावधान किया गया।
भोट: 1909 ई. में लाई भाले इंग्लैंड में भारत के राज्य सचिव थे और लॉर्ड मिंटो भारत के पाय।
1919 ई. का भारत शासन अधिनियम (माण्टेग्यू देनाफोर्ड सुधार) इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ हैं। केन्द्र में द्विदनात्मक विधायिका की स्थापना की गयी प्रथम राज्य परिषद् तथा दूसरी केन्द्रीय विधानसभा। राज्य परिषद् के सदस्यों की संख्या 60 वी, जिसमें 34 निर्वाचित होते थे और उनका कार्यकाल 5 वर्षों का होता था। केन्द्रीय विधानसभा के सदस्यों की संख्या 144 थी, जिनमें 104 निर्वाचित तया 40 मनोनीत होते थे। इनका कार्यकाल 3 वर्षों का था। दोनों सदनों के अधिकार समान थे। इनमें सिर्फ एक अन्तर था कि बजट पर स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार निचले सदन की था। 2. प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली का प्रवर्तन किया गया (प्रांतों में द्वैिध शासन के जनक लियोनस कॉर्टियम थे।)। 3. इस योजना के अनुसार प्रान्तीय विषयों को दो उपवों में विभाजित किया गया आरक्षित तथा हस्तान्तरित वा अन्तरित।
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पुलिस, पेंशन, आपराधिक जातियों (criminal tribes) আপ্য समाचारपत्र, सिचाई जानकर विजीर श्रमिक कल्याण, औद्योगिकविता मोटरगाडि बराह और सार्वजनिक सेवाएँ आदि।
शासन, चिकित्सा सहायता, गार्वजनिक निर्माण विभा उधोग, ती तथा माप सार्वजनिक नीरज पर निवण, सार्तिक
मीट आरक्षित विषयों का प्रावऔर उसकी कार्यकारी परिष के माध्यम से किया जाना था कि हातात विका प्रशासन पर्ववर द्वारा विधानपरिषद प्रतिि की सहायता से किया जाना था। इसी 1935 ई. के एक्ट के द्वारा कर दिया गया
4. भारत सचिव को अधिकार दिया गया कि यह भारत में खा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है। इस अधिनियम भारत में एक बोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया। अतः 1926 में ली आयोग (1923-24) की सिफारिश पर सिविल सेवकों की भर्ती के लिए केन्द्रीय लोक नेता आधी का गठन किया गया। 6. इस अधिनियम के अनुसार वासराय की कार्यकारी परिषद् में छह सदस्यों में से कमांडर इन चीफ को तोड़कर) तीन सदस्यों का भारतीय होना आवश्यक था। इसने सांप्रदायिक आधार पर सिक्खों, भारतीय ईसाइयों भारतीयों और यूरोपीयों के लिए भी पूचक निर्वाचन के सिद्धांत की विस्तारित कर दिया। इसमें पहली बार केन्द्रीय बजट को राज्यों के अलग कर दिया गया। 9. इसके अंतर्गत एक वैधानिक आधी का गठन किया गया जिसका कार्य दस वर्ष बाद जाँच करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था 1:10. इस अधिनियम में केन्द्रीय विधानसभावावराय के अध्यादेश जारी करने की शक्तियों को निम्न में चनाए रखा गया। (a) कुछ विषयों से संबंधित विचकों की विचारार्थ प्रस्तुत करने के लिए उसकी पूर्व अनुमति आवश्यक थी, उसे भारतीय विधान सभा द्वारा पारित किसी भी विधेयक को पीटी करने वा सम्राट के विचार के लिए आरक्षित करने की शक्ति बीउ यह शक्ति थी कि विधानमंडल द्वारा नामंजूर किए गए या पारितন किए गए किसी विधेयक या अनुदान को प्रमाणित कर दे तो ऐसे प्रमाणित विधेयक विधान मंडल द्वारा पारित विधयक के समान हो जाते थे. (1) वह आपात स्थिति में अध्यादेश बना सकता था जिनका अध्थायी अवधि के लिए विधिक प्रभाव होता था।
नोट माटेग्यू-चेम्सफोर्ड धार (मारत शासन अधिनियम-1019) द्वारा भारत में पहली बार महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला उस समय इंग्लैंड का प्रधानमंत्री
1935 ई का भारत शासन अधिनियम 1935ई के अधिनियम में 321 अनुच्छेद और 10 अनुभूचियाँ वी। इस अधिनियम की मुष्ण विशेषताएँ इस प्रकार हैं
1. अधिक भारतीय राय यह संघ 11 ब्रिटिश प्रान्ती, 6 चीफ कीज्नर के क्षेत्रों और उन देशी रियासतों से विकर बनना था जो लेच्छा से संघ में भिकित हो। प्रान्तों के लिए गंप में सश्थिकित होता अनिवार्य था, किन्तु देशी रियासतों के लिए यह ऐरिखका। देशी रियासतें गंध में मिलित नहीं हुई और प्रस्तावित संघ की स्थापना संबंधी घोषणा पत्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया। 2. प्रातीय स्वायत्तता इस अधिनियम के द्वारा प्रांतों में व्यवस्था का अन्त कर उन्हें एक स्वतंत्र औरतधानिक आधार प्रदान किया गया।
3. केन्द्र में कैच शक्तियों को केन्द्र और प्रांतीय किया गया। इसके तहत सूची का निर्माण किया
गया।