1.पुस्तकालय
विचार विन्दु । भूमिका, 2. महत्त्व, 3. उपयोगिता, 4. हानि, निष्कर्ष
भूमिका पुस्तकें मानव की सबसे अच्छी दोस्त होती है जो बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक उसका सहारा होती है। पुस्तकों के कारण ही आज शिक्षा पद्धति सुदृढ़ हो पाई है। लोगों में ज्ञान और अनुभव का विस्तार हुआ है।
किसी भी व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं कि हर तरह के पुस्तकों का संग्रह कर रख सके। अंत ज्ञान की गंगा सबके लिए सुलभ हो सके परंपरा की चिन्तन सम्पदा हस्तगत हो सके, इसके लिए पुस्तकालय की आवश्यकता महसूस हुई।
पुस्तकालय का अर्थ होता है- पुस्तकों का घर। यहाँ पर ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, राजनीति-विज्ञान आदि विषयों की अलग-अलग भाषाओं में पुस्तकों का संग्रह होता है। जिसका उपयोग हम आगे आने वाले जीवन को बेहतर बनाने के लिए कर सकते हैं।
महत्त्व-पुस्तकालय का महत्त्व मानव जीवन में प्राचीन काल से रही है। यहाँ संसार के सर्वोत्तम ज्ञान और विचारों का संगम होता है। किसी प्राचीन विषय का अध्ययन करना हो या वर्तमान विषय का, विज्ञान और तकनीकी का अध्ययन करना हो या किसी कला या साहित्य का कविताओं की कोई अच्छी पुस्तक चाहिए या किसी महापुरुष की जीवनी सब कुछ एक स्थान यानी पुस्तकालय में हमें मिल जाती है।
पुस्तकालय हमारे विद्यार्थी जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इनके माध्यम से हमें देश-विदेश के महान लेखकों की लिखी हुई पुस्तकें पढ़ने का अवसर मिल जाता है। विद्यार्थी यहाँ पर आकर आराम से शांति माहौल में पुस्तके पढ़ सकता है और अपने ज्ञान के जिज्ञासा को शांत कर सकता है।
उपयोगिता पुस्तकालय ज्ञान का असीम भंडार है। यह एक ऐसा स्रोत है जहाँ से ज्ञान की निर्मल धारा सदैव बहती रहती है। पुस्तकालय हमें प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान काल के विचारों से अवगत कराती है। कोई व्यक्ति एक सीमा तक ही पुस्तकें खरीद सकता है। सभी प्रकाशित पुस्तकें खरीदना सबके बस की बात नहीं। गरीब हो या अमीर, जो भी शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए पुस्तकालय एक सच्चा मित्र की तरह हैं। इसलिए पुस्तकालय की उपयोगिता सदैव बनी रहेगी।
हानि-पुस्तकालयों से हानियाँ भी होती है, यह सर्वथा असंगत होगा, किन्तु कुछ लोग अच्छी वस्तु का दुरुपयोग करके उसे हानिकारक बना देते हैं। इसी प्रकार कुछ विद्यार्थी पुस्तकालय में जाकर मनोरंजन या कहानियाँ पढ़ते रहते हैं और अपनी पाठ्य – पुस्तकों की उपेक्षा कर देते हैं। जिसका परिणाम उनके लिए हानिकारक होता है।
पुस्तकालय में अक्सर देखा गया है कि कुछ लोग अच्छी-अच्छी पुस्तकों को चुरा लेते हैं या उसका पेज फाड़ लेते हैं। ऐसे में वे न सिर्फ दूसरों का नुकसान करते हैं बल्कि खुद का भी नुकसान करते हैं।
इसमें पुस्तकालय का कोई दोष नहीं है, वे ज्ञान के भंडार है। हमें ज्ञान ज्योति प्रदान करते हैं।
निष्कर्ष-पुस्तकालय वास्तव में ज्ञान का असीम भंडार है। देश की शिक्षित जनता के लिए उन्नति का सर्वोत्तम साधन है। भारत वर्ष में अच्छे पुस्तकालयों की संख्या पर्याप्त नहीं है। भारत सरकार इस दिशा में प्रत्यनशील है। वास्तव में पुस्तकें मनुष्य की सच्ची मित्र सदगुरु और जीवन पथ की संरक्षिका है।
2.. मेरा प्रिय खेल (फुटबॉल)
विचार बिन्दु – 1. भूमिका, 2. लाभ, 3. निष्कर्ष।
भूमिका स्वस्थ जीवन और सफलता के लिए एक व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की आवश्यकता होती है। नियमित शारीरिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए खेल सबसे अच्छा तरीका है।
यू तो भारत में कई प्रकार के खेल प्रचलित हैं। इसमें प्रमुख है-फुटबॉल, टेनिस, बैडमिंटन तथा क्रिकेट। वर्तमान समय में क्रिकेट सर्वाधिक लोकप्रिय है परंतु यह खर्चीला और उवाऊ है। इनमें समय की बर्बादी भी होती है। इसलिए मेरा प्रिय खेल फुटबॉल है।
फुटबॉल का खेल खुले मैदान में खेला जाता है। यह खेल दो दलों के बीच होता है। प्रत्येक दल में 11-11 खिलाड़ी होते हैं। जिनका लक्ष्य एक दूसरे के खिलाफ अधिकतम गोल करना होता है। इस खेल की अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता 90 मिनट की होती है।
लाभ-फुटबॉल वह खेल है जो व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से स्वस्थ और अच्छा बनाता है। यह मनोरंजन का महान स्त्रोत है जो शरीर और मन को तरोताजा करता है। फुटबॉल के खेल में खिलाड़ी खेल-खेल में ही जीवन के संघर्षों और उत्तार-चढ़ाव से भली-भाँति परिचित हो जाता है। इस खेल से सहयोग और दलीय अनुशासन की भावना स्वतः आ जाती है। खेल के मैदान में खिलाड़ी अपनी स्वतंत्र सत्ता को भूल जाता है। उसके सामने दल के सम्मान की रक्षा मुख्य ध्येय बन जाता है। खेल में किसी एक खिलाड़ी की जीत या हार नहीं होती, जीत-हार पूरी टीम की होती है, जो सभी खिलाड़ियों को टीम भावना सिखाता है।
निष्कर्ष फुटबॉल एक अंतर्राष्ट्रीय खेल है। इस खेल से उच्च भावना का विकास होता है। लेकिन जब टीम का कोई सदस्य विपक्षी टीम से मिलकर परिणाम को प्रभावित करता है तो खेल भावना को हानि पहुँचती है।
फुटबॉल खेल के द्वारा विद्यार्थियों में ऐसी भावना पनपायी जा सकती है जिसे अंग्रेजी में स्पोर्टसमेन्स स्पीरिट करते हैं। खेल के प्रारंभ से अंत तक खिलाड़ी पूरी तन्मयता के साथ खेलता है। वहाँ की जय-पराजय को जीवन की जय-पराजय से भी अधिक सत्य मानकर अपनी टीम को विजय दिलाने में वह अपनी पूरी शक्ति लगा देते हैं। पर खेल खत्म होते ही वह अपनौ जय-पराजय को भूलकर अपने विरोधी दल के सदस्यों से घनिष्ट मित्रों की भाँति दिल खोलकर मिलता है। जीवन भी एक खेल का मैदान है। यहाँ भी सफलता पाने के लिए ऐसी ही ‘स्पीरिट’ की आवश्यकता है।
3.मेरा गाँव
विचार बिन्दु- 1. गाँव का परिचय, 2. गाँव के लोग, 3. गाँव की सुंटरना,
गाँव का परिचय हमारे देश भारत गाँवों का देश है। इसलिए कहा जाता है कि देश की आत्मा गाँवों में निवास करती है। मेरे गाँव में भारतीय संस्कृति के दर्शन होते हैं। यहाँ भारत की सदियों से चली आ रही परंपराएँ आज विद्यमान हैं। गाँव का जीवन बड़ा ही सदा और सरल है। मेरे गाँव की एकता सबसे श्रेष्ठ है। यहाँ घ र्म और जाति का कोई भेदभाव नहीं होता है। यहाँ के अधिकतर लोग किसान व मजदूर हैं जो देशवासियों के अन्नदाता हैं। देश की अर्थव्यवस्था के विकास में मेरे गाँव के कुटीर उद्योग, पशुधन, वन, मौसमी फल और सब्जियों इत्यादि के योगदान की अनदेखी नहीं की जा सकतीं।
मेरे गाँव का नाम रतनपुर है जो गंगा नदी के तट पर स्थित है, जो शहर से महज 20 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है।
गाँव के लोग मेरे गाँव की आबादी लगभग 200 परिवारों की है, जो मिलजुल कर एक परिवार की तरह रहते हैं। सभी एक-दूसरे के दुख-सुख में शामिल होते हैं। भोले-भाले गरीब किन्तु ईमानदार अनपढ़ लोग सुबह से से शाम तक खेतों में परिश्रम करते हैं। कुछ परिवार लघु एवं कुटीर उद्योगों पर निर्भर है। कुछ लोग प्रतिदिन शहर जाकर जीविकोपार्जन करते हैं।
गाँव के लोगों के लिए एक अस्पताल, सरकारी विद्यालय, डाकघर और पंचायत भवन है।
गाँव की सुंदरता मेरे गाँव की प्राकृतिक सुन्दरता देखते ही बनती है। यहाँ का माहौल काफी स्वच्छ और सुन्दर है। गंगा नदी और खेतों के हरियाली के बीच बसा होने के कारण गाँव का पर्यावरण एवं स्वास्थ्य लोगों के लिए अनुकूल है। सुबह-शाम गंगा किनारे से चलने वाली स्वच्छ हवा लोगों को आत्मनिर्भर कर देती है। गाँव के खेत, खलिहान और चारों तरफ की हरियाली मन को मोहने वाली होती है।
गाँव की पाठशाला मेरे गाँव में एक प्राथमिक और मध्य विद्यालय है। गाँव के बच्चे इसी स्कूलम में शिक्षा पाते हैं। इसमें छः अध्यापक और एक प्रधानाध्यापक हैं। सभी शिक्षक समर्पित भाव से बच्चों में सर्वांगीण विकास के लिए तत्पर रहते हैं। मेरे गाँव की शिक्षा में काफी प्रगति हुआ है। मध्य विद्यालय को उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में उत्क्रमित होने से 12वीं तक की शिक्षा गाँव में ही उपलब्ध हो जाती है।
मेरे गाँव की पाठशाला में शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा तथा शारीरिक शिक्षा प्रदान की जाती है। लड़कों को बागवानी और लड़कियों को कढ़ाई-बुनाई के लिए प्रेरित किया जाता है। छोटे-छोटे बच्चों के लिए एक आँगनबाड़ी केन्द्र भी है। निः संदेह मेरे गाँव एक आदर्श गाँव है।