Bihar Board 10th Vvi solved हिंदी Question answer
10th Exam 12th Exam Bihar Board Exam Matric Exam

बिहार बोर्ड 10th Vvi solved हिंदी Question answer

1.पानी की बचत

(1) भूमिका,(II) महत्त्व,(iii) उपाय,(iv) लाभ,(v) उपसंहार

भूमिका पानी मनुष्य के लिए ईश्वर की सबसे बड़ी नेमत है। इसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। पृथ्वी की सतह पर जो पानी है उसमें से 97% सागरों और महासागरों में है, जो नमकीन है और पीने के काम नहीं आ सकता। केवल 3% पानी पीने योग्य है जो ताजे और स्वच्छ पानी है। ताजे और स्वच्छ पानी की आपूत्ति को बनाये रखने के लिए पानी की बचत करना आवश्यक है ताकि आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ जल उपलब्ध हो सकेगा।

महत्व पृथ्वी पर पानी सभी जीव जन्तुओं के लिए बहुमूल्य सम्पदा है। पानी के बिना पृथ्वी पर कोई भी मनुष्य या जीव जन्तु जीवित नहीं रह सकता। इंसान खाने के बिना कुछ समय तक जीवित रह सकते हैं लेकिन पानी के बिना जीवित रहना असंभव है। फसलों के उत्पादन और खेती के लिए पानी का उपयोग ■ किया जाता है। पानी की मदद से ही बिजली उत्पन्न की जाती है जो हमारे दैनिकजीवन में बेहद ही महत्त्वपूर्ण है। जीवन में पानी पीने के लिए ही नहीं अपितु दैनिक जीवन में भी बहुत उपयोगी है जैसे कि स्नान करना, खाना पकाना, कपड़े धोना आदि। इसलिए मानव जीवन में पानी का सबसे अधिक महत्व है।

उपाय ‘जल है तो कल है।’ बावजूद इसके जल बेवजह वर्बाद किया जाता है। यदि हम सचेत नहीं होंगे तो आने वाला कल हाहाकारी होगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जल संकट का समाधान जल के संरक्षण से ही है। इसके लिए दैनिक उपयोग में जरूरत के हिसाब से ही जल का उपयोग करें। अनावश्यक नल को खुला न छोड़ें। जहाँ कहीं भी नल लीक करें उसे तुरंत ठीक करवाएँ। पौधे में पानी पाइप की जगह फुहारे से दें। पानी की एक-एक बूँद को बचाना आज की जरूरत है।

लाभ-जल मानवता के सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों में एक है। पानी के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। जल के बिना पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, फसलों के साथ साथ मानव जाति और पूरी सृष्टि का अस्तित्व नहीं बचेगा। यह हमारे लिए आज और कल दोनों के लिए लाभदायक है।

उपसंहार ‘जल ही जीवन है’ लेकिन जल की बर्बादी के कारण इसकी उपलब्धता घट रही है। जल का स्तर निरंतर घटती जा रही है। हमारी आने वाली पीढ़ी को शुद्ध और स्वच्छ जल उपलब्ध कराना प्रत्येक मनुष्य का दायित्व बनता है। यह हमारी राष्ट्रीय जिम्मेदारी बनती है।

‘पानी की बचत आज की जरूरत’

2.पर्यावरण विवस

(1) भूमिका, (ii) महत्त्व, (iii) आवश्यकता, (iv) लाभ,

भूमिका हमारी पृथ्वी जो हमारा घर है, जहाँ हम मनुष्य पशु-पक्षी, पौधे निवास करते हैं। इसके ही पर्यावरण के संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर हर साल 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1972 में मानव पर्यावरण पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान हुई थी। 5 जून, 1973 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया, तब से प्रतिवर्ष 5 जून को पर्यावरण (World Environment Day) मनाया जाता है।

महत्त्व हमारे आस-पास का वातावरण पर्यावरण कहलाता है। यह सभी जैविक तथा अजैविक घटकों यथा पर्यावरण, जलवायु, प्रदूषण तथा वृक्ष सभी को मिलाकर बनता है। ये सभी चीजे यानी पर्यावरण हमारे दैनिक जीवन से सीधा संबंध रखता है और उसे प्रभावित करता है। मनुष्य और पर्यावरण एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। जिस तरह से प्राकृतिक हवा, पानी और मिट्टी दूषित हो रहे हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे एक दिन हमें बहुत हानि पहुँच सकता है।

आवश्यकता धरती पर जीवन के लालन-पालन के लिए पर्यावरण प्रकृति का उपहार है। पर्यावरण से हमें वह हर संसाधन उपलब्ध हो जाते हैं जो किसी सजीव प्राणी को जीने के लिए आवश्यक है। पर्यावरण के अभाव में जमीन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हमें भविष्य में जीवन को बचाये रखने के लिए पर्यावरण की सुरक्षा को सुनिश्चित करना आवश्यक होगा।

लाभ-पर्यावरण दिवस मनाने से लोगों को विश्वव्यापी तरीके से पर्यावरणीय मुद्दों पर विचार करने के लिए याद दिलाया जाता है। यह पर्यावरण संरक्षण के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाता है और लोगों को पर्यावरण संरक्षण की महत्ता के बारे में जागरूक करता है।

पर्यावरण दिवस वैश्विक सहयोग के लिए एक मंच प्रदान करता है जो व्यक्ति, व्यापार, सरकारों को प्रदूषण कम करने वाले कार्यों को करने के लिए जागरूक करता है। यह पर्यावरण के बारे में ज्ञान प्रसारित करने और पर्यावरणीय साक्षरता को प्रोत्साहित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

निष्कर्ष यह पृथ्वी सिर्फ हमारा घर ही नहीं बल्कि हमारी माता भी है, इसके शोषण और दोहन को रोकना हमारा कर्तव्य है। यदि अभी भी इसे नहीं रोका गया, तो इसका परिणाम स्वयं मानव जाति को ही भोगने होंगे। पर्यावरण दिवस मनाने का उद्देश्य यह है कि हम प्रकृति के प्रति अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करें जितना हमारे लिए आवश्यक है। साथ ही अपनी अस्मिता के साथ-साथ इस धरती पर रहने वाले सभी जीवों की अस्मिता का आदर करें तथा पर्यावरण को संरक्षित करने का प्रयास करें।

3.जातिवाव

(1) जातिवाद का तात्पर्य, (1) कारणउपाय (२) उपमहार

जातिवाद का मात्पर्य जातिवाद एक सामाजिक बुराई है जो प्राचीन काल से भारतीय समाज में मौजदू है। वर्षों से लोग इसकी आलोचना कर रहें हैं लेकिन फिर भी जातिवाद ने हमारे देश के सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर आपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी है।

जातिवाद किसी व्यक्ति की अपनी जाति के प्रति अंधश्रद्धा है जो कि दूसरों जातियों के हितों की परवाह नहीं करती और अपनी जाति के सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक और अन्य जरूरतों को पूरा करने को ध्यान रखती है।

कारण देश में जातिवाद को बढ़ावा देने और जातिवाद पर लोगों की भावनाओं को आहत करने हेतु बहुत से कारण रहे हैं। आदिकाल में मानव छोटे-छोटे ममह बनाकर जीवनयापन करते थे। कालान्तर में यह छोटे-छोटे समूह जातिवाद में तब्दील हो गये। हमारी पारम्परिक रूढ़िवादी विचारधारा जातिवाद को बढ़ावा देने में सबसे अधिक हवा दे रही है। भारत में जाति प्रथा का सबसे मुख्य कारण यहाँ का सामाजिक वर्ण व्यवस्था थी, जो किसी अच्छे उद्देश्य के लिए स्थापित की गई थी लेकिन उसने विकृति रूप धारण कर लिया और भारत में जातिप्रथा की उत्पत्ति हुई।

हानि-भारतीय समाज पर जातिवाद के दुष्प्रभाव अत्यधिक व्यापक, गंभीर और दूरगामी है। जातिवाद सामाजिक अलगाव की प्रवृत्ति का परिचायक है। इसके चलते समाज अलग-अलग समूहों में बट जाता है। जातिवाद के कारण अनेक छोटे-छोटे उपजाति समूह संगठित हो जाते हैं। इससे व्यक्ति की सामुदायिक भावना अत्यंत संकुचित हो जाती है। यह केवल अपने समूह के हितों के बारे में और सुख-सुविधाओं के बारे में ही सोचता है। यह स्थिति राष्ट्रीय एकता में बाधक है।

उपाय जातिवाद कोई ईश्वरीय व्यवस्था नहीं है। यह हमोरी आधुनिक सभ्य समाज की देन है। इसलिए जातिवाद को कमजोर करने का उपाय समाज और सरकार दोनों को मिलकर करना चाहिए। जातिवाद को रोकने के लिए शिक्षा के स्तर को इतना ऊँचा उठाना चाहिए कि लोग जातीय संकीर्णता से दूर रहें। जातिवाद को दूर करने के लिए समाज में समानता का भाव लाना आवश्यक है। इसलिए अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन देना चाहिए। ग्रामीण परिवेश में जातिवाद को जड़े काफी मजबूत होती है इसलिए ग्रामीण विकास के साथ-साथ नगरीकरण का तीव गति से विकास किया जाना चाहिए।

उपसंहार वस्तुतः जातिवाद एक सामाजिक जहर है जिसने भारतीय समाज को इस प्रकार विषाक्त कर दिया है कि उसका इलाज हो पाना कठिन हो गया है। यदि इस जहर को आम जनजीवन से शीघ्र निकाला नहीं गया हो भारतीय समाज के लिए अपने अस्तित्व को बचा पाना कठिन हो जाएगा। हालांकि आधुनिक युग में जातिवाद कई मायनों में कमजोर हुई है तो किन्हीं मामलों से मजबूत भी हुई है।

 

 

बिहार बोर्ड Social Scince महत्वपूर्ण प्रश्न उतर देखें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *