बिहार बोर्ड सामाजिक विज्ञान 10th Vvi Question answer
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बिहार बोर्ड Social Scince 10th Vvi Question answer

1.संसाधन संरक्षण का क्या महत्त्व है?

भानव प्राकृतिक संसाधनों का सृष्टिकर्ता नहीं है इसलिए मानन्त्र प्राकृि संसाधन को पूँजी समझकर उपयोग करे। इसका तात्पर्य यह है कि संसाधनों के उपयोग में कम-से-कम दुरुपयोग हो, उनकी कम-से-कम बर्बादी हो। मिट्टी जैसी संपदा की उर्वरता बनी रहे, उसे निम्नीकरण या कटाव से बचाया जाय। वन सम्पदा के अत्यधिक उपयोग में लाए जाने पर पुनः स्थापन पर बल देना उनका संरक्षण कहलाता है। अतः संरक्षण से तात्पर्य है संसाधनों का अधिकाधिक समय तक अधिक लोगों के लिए आवश्यकता की पूर्ति हेतु उपयोग हो।

संसार की आबादी का बड़ा भाग कृषि पर आश्रित है और कृषि कार्य के लिए मानव भूमि और मिट्टी का उपयोग करता है। इन संसाधनों का मूल्यांकण किया जाना चाहिए। यदि इनमें कोई कमी है तो उसे पूरा कर उपयुक्त बनाया जाए। यदि वह बर्बाद हो रही है तो किस तरह उसका संरक्षण किया जाए। इसके लिए भूमि का उपयोग इस प्रकार होना चाहिए कि मिट्टी के प्रकार के अनुसार फसलें उगानी चाहिए ताकि भूमि की उत्पादकता बनी रहे और मिट्टी की गुणवत्ता नष्ट न हो।

इस प्रकार जल संरक्षण, वन एवं वन्य प्राणी संरक्षण, खनिज संपदा संरक्षण के लिए भी योजनाबद्ध और विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए तो उनसे अधिक से अधिक समय तक लाभ उठाया जा सकता है तथा वे मानव जगत के लिए संरक्षित रह सकते हैं। संसाधनों का योजनाबद्ध, समुचित और विवेकपूर्ण उपयोग ही उनका संरक्षण है। संरक्षण का तात्पर्य कदापि यह नहीं कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग न कर उनकी रक्षा की जाए उनके खर्च की आवश्यकता के बावजूद उन्हें बचाकर भविष्य के लिए रखा जाए।

2.जैव विविधता क्या है? यह मानव जीवन के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?

किसी विशेष क्षेत्र में उपस्थित एक सामुदायिक जातियों की संख्या एवं जातियों के अंतर्गत आनुवंशिक परिवर्तनशीलता की मात्रा उस क्षेत्र के समुदाय की जैव विविधता कहलाती है।

जैव विविधता मानव के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह नई फसलों, औषधियों को प्राप्त करने का स्रोत है। बढ़ती हुई जनसंख्या के पेट भरने के लिए एवं स्वस्थ रहने के लिए इन फसलों एवं औषधियों का महत्त्व और भी अधिक है। इससे मानवीय विकास को गति प्रदान होती है। पर्यावरणीय परिवर्तन का सामना करने में जैव विविधता महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। यह वर्तमान समय में सभी जातियों की आनुवंशिक विविधताओं को संरक्षित रखने में सहायक होता है।

इस प्रकार मानव जीवन को स्वस्थ, संतुलित तथा विकासशील रखने में जैव विविधता को अक्षुण बनाए रखना मानव के लिए महत्त्वपूर्ण है।

3.किस प्रकार मानवीय क्रियाएँ वनस्पति एवं जीव-जंतुओं के ह्रास के लिए उत्तरदायी हैं?

वनस्पति, मानव को दिया गया प्रकृति का एक अमूल्य उपहार है। ये वन. स्पतियाँ कई प्रकार से मनुष्य के जीवन की रक्षा करते हुए विकास को गतिशील बनाने में सहायक होती हैं। विकास के इस दौर में मानव प्रकृति के इस अमूल्य योगदान को भूलता जा रहा है।

मानव ने विकास के नाम पर सड़कों, रेलमागाँ, शहरों का निर्माण करना शुरू किया। इसके लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की गयी। जिससे वनों का नाश होने लगा, वन्य प्राणियों का आश्रय स्थल ही उजड़ने लगा।

कृषि से अत्यधिक उपज के लिए अत्यधिक सिंचाई, रासायनिक खाद का प्रयोग किया गया। इसके कारण एक ओर भूमि निम्नीकरण से वनों को नुकसान हुआ तो दूसरी ओर जलों के दुषित होने से जीव-जंतु के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा। कल-कारखाने स्थापित करने के लिए वनों की कटाई की गयी। पुनः इन कल-कारखानों से निकलने वाले धुआँ और कचरों ने वायु और जल को दूषित किया, जिससे अम्लीय वर्षा के कारण वन और वन्य प्राणियों पर खराब प्रभाव पड़ा।

वनों के ह्रास ने प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ दिया, जिससे जलवायु परिवर्तन जैसी समस्या सामने आने लगी है।

4.भारतीय कृषि पर भूमंडलीकरण के प्रभाव पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

भूमंडलीकरण का उद्देश्य है हमारे राष्ट्रीय अर्थतंत्र का विश्व अर्थतंत्र से जुड़ना। विश्व का बाजार सबके लिए मुक्त हो। इससे अच्छे किस्म का सामान उचित मूल्य पर कहीं भी पहुँचाया जा सकेगा।

भारतीय कृषि के विकास के लिए उपयुक्त जलवायु मिट्टी और श्रमिकों का सहारा लेकर किसान उन्नत किस्म के खाद्यान्नों तथा अन्य कृषि उत्पादों को विश्व बाजार में प्रवेश करा सकेंगे। इसमें प्रतिस्पर्द्धा का सामना होगा। सामना करने के लिए उन्नत तकनीकी उपायों का सहारा लेना होगा। भारतीय कृषि में अधिकाधिक विकास करने की आवश्यकता है।

भूमंडलीकरण भारत के लिए कोई नया कार्य नहीं है। प्राचीन समय से ही भारतीय सामान विदेशों में जाया करता था और विदेशों से आवश्यक सामग्री भारतीय बाजारों में बिकते थे। परंतु 1990 से वैधानिक रूप से भूमंडलीकरण और उदारीकरण की नीति अपनाने के बाद विश्वबाजार में प्रतिस्पर्द्धा के कारण कृषि के क्षेत्र में उन्नत तकनीक और मशीनों का प्रयोग बढ़ रहा है। साथ ही खाद्यान्नों की अपेक्षा व्यापारिक फसल के उत्पादन को बढ़ावा मिल रहा है।

5.भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्वीकरण के प्रभाव

का विवरण दीजिए

भारत में वैश्वीकरण की आवश्यकता आज के संदर्भ में अति आवश्यक है। विकास की जो स्थिति है उसके लिए उद्योग एवं व्यापार को नई प्रौद्योगिकी और ज्ञान की आवश्यकता है। ऐसी स्थिति में देश में आध निक तकनीकी ज्ञान एवं पूँजी को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए तथा विश्व बाजार में पूँजी और उत्पादित वस्तुओं को भेजने में वैश्वीकरण का महत्त्व काफी बढ़ गया है। भारत के लिए वैश्वीकरण कई कारणों से आवश्यक है।

(1) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहन – वैश्वीकरण के द्वारा विदेशी निवेश को प्रोत्साहन मिलता है। भारत जैसे विकासशील देश अपने विकास के लिए पूँजी प्राप्त कर सकेगा।(II) मानवीय पूँजी की क्षमता का विकास वैश्वीकरण के लिए दो मुख्य घटकों का होना अनिवार्य होता है-शिक्षा तथा कौशल । इन दोनों घटकों के द्वारा ही मानवीय विकास को बढ़ावा मिलता है।

(iii) प्रतियोगिता वैश्वीकरण के संसाधनों के आवंटन में कुशलता आएगी। ‘पूँजी-निपज अनुपात’ घटेगा तथा श्रम की उत्पादकता में वृद्धि होगी। इससे देश में विदेशी पूँजी एवं आधुनिक तकनीक प्रवाहित हो सकेगी।

(iv) अच्छी उपभोक्ता वस्तुओं की प्राप्ति- भारत में वैश्वीकरण की आवश्यकता भारत जैसे विकासशील देशों को अच्छी गुणवत्ता वाली उपभोग की वस्तुओं की तुलना में कम कीमत पर प्राप्त करने के योग्य बनाता है।

(v) नये बाजार तक पहुँच – भारत जैसे विकासशील देश के लिए विश्व के बाजारों तक पहुँचने का एक आम रास्ता वैश्वीकरण ही है।

(vi) उत्पादन के स्तर को उन्नत करना- वैश्वीकरण के माध्यम से ही संभव हो पाता है क्योंकि वैश्वीकरण के द्वारा अच्छे किस्म के मशीन तथा उन्नत तकनीक के उपयोग से उत्पादन के स्तर को ऊपर उठाया जाता है।

(vii) बैंकिंग तथा वित्तीय क्षेत्रों में सुधार- देश में विदेशी बैंकों के आगमन

से देश की बैंकिंग व वित्तीय व्यवस्था में सुधार होगा।

बिहार बोर्ड हिंदी के महत्वपूर्ण प्रश्न उतर देखें।

 

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