1.गणतंत्र दिवस
विचार बिन्दु- 1. भूमिका, 2. इतिहास, 3. महत्त्व. 4. उपसंहार।
भूमिका प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाने वाला गणतंत्र का एक महान राष्ट्रीय पर्व है। इसे पूरे भारतवासी पूरे उत्साह जोश और सम्मान के साथ मनाते हैं। यह किसी विशेष धर्म, जाति या सम्प्रदाय से न जुड़कर राष्ट्रीयता से जुड़ा है, इसलिए देश का प्रत्येक भारतवासी गणतंत्र दिवस को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाता है। यह वह दिन है जब भारत में गणतंत्र और संविधान की स्थापना हुई थी।
गणतंत्र दिवस के अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम की स्मृति ताजी हो जाती है। हमें यह याद हो जाता है कि किस तरह आजादी के दिवाने देशभक्तों के जीवन भर के संघर्षों के परिणाम स्वरूप 15 अगस्त, 1947 को हमारा देश आजाद हुआ और 26 जनवरी, 1950 को एक धर्मनिरपेक्ष, लोककल्याणकारी, सार्वभौमिक गणराज्य के रूप में उदय हुआ।
इतिहास- आजादी के पश्चात डॉ० भीमराव अम्बेदकर ने पहली बार संविधान की रूप रेखा संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत किया। कुछ संशोधनों के उपरांत नवंबर 1949 में इसे स्वीकार कर लिया। संविधान सभा के सभी सदस्य चाहते थे कि इसे ऐसे दिन पारित किया जाए जो देश के गौरव से जुड़ा हुआ दिन हो। तब सबकी सहमति से निर्णय लिया गया कि पूर्ण स्वराज दिवस (26 जनवरी) के दिन भारत का संविधान लागू किया जाए। इसलिए हमारी संसद ने 26 जनवरी, 1950 को पारित किया। इसके साथ ही भारत लोकतांत्रिक गणराज्य बना। तभी से 26 जनवरी को पूरे हर्षोल्लास के साथ भारतवासियों द्वारा गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
महत्त्व- हमारे संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को समान रूप से राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक अधिकार दिये हैं। गणतंत्र दिवस का पर्व हमारे अंदर आत्मगौरव भरने तथा पूर्ण स्वतंत्रता की अनुभूति कराता है।
गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली के लाल किला पर झंडारोहण किया जाता है। राष्ट्रगान के बाद राजपथ पर भारतीय सेना द्वारा भव्य परेड का आयोजन होता है। भारत में आजादी के बाद ‘विविधता में एकता’ के अस्तित्व को दिखाने के लिए राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर झाँकियों का प्रदर्शन किया जाता है। इसके माध्यम से देश अपनी संस्कृति परम्परा और प्रगति को प्रदर्शित करते हैं।
उपसंहार-गणतंत्र दिवस प्रत्येक भारतवासी के लिए महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्व है। यह पर्व कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक गाँव-गाँव में, शहर-शहर में, घर-घर में उत्साह के साथ मनाया जाता है। देश के सारे स्कूलों, कॉलेजों, राजकीय संस्थानों से लेकर गाँव के चौपालों तक दिन भर उत्सव चलता रहता है। ‘वन्दे मातरम’ की सुमधुर ध्वनि सर्वत्र गुजती रहती है। वास्तव में यह शुभ दिन भारत के लिए गौरवमय दिन है।
2.सरस्वती पूजा विचार बिन्दु – 1. प्रारंभ, 2. पर्याय, 3. उत्सव, 4. महात्थ्य्य।
प्रारंभ-माँ सरस्वती विद्या, ज्ञान और कला की देवी है। सरस्वती पूजा के ख्याल से ही छात्र-छात्राओं में जोश का संचार हो जाता है। प्रत्येक शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों द्वारा पूरी तन्मयता के साथ सरस्वती पूजा का आयोजन किया जाता है। बड़े-बूढ़े भी बच्चों का पूरा सहयोग देते हैं।
सरस्वती पूजा माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। यह जनवरी या फरवरी माह में आता है। इस पूजा में माँ सरस्वती की प्रतिमा एक या दो दिन के लिए बैठाई जाती है। छात्र-छात्राएँ सरस्वती पूजा के दिन सुबह-सुबह नहा-धोकर विद्यादायनी माँ सरस्वती की पूजा करते हैं और फिर प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस पर्व को वसन्तोत्सव, वसंत पंचमी, श्री पंचमी भी कहा जाता है।
पर्याय-प्राचीन वाङ्मय में सरस्वती को वागाधिष्ठात्री देवी अर्थात् विद्या एवं बुद्धि का पर्याय माना गया है। कहा जाता है कि इनका वस्त्र शुभ्र अर्थात् उजला और धवल है जो सादगी एवं स्वच्छता का प्रतीक है। इनका वाहन हंस है जो दूध का दूध और पानी का पानी कर देने के विवेक का परिचायक है। इनके एक हाथमें पुस्तक है जो विश्व के समस्त ज्ञान के प्रकाश स्रोत का पर्याय है। इनके एक हाथ में वीणा है जो यह प्रेरणा देती है कि हमें अपने जीवन में ज्ञान के साथ-साथ ■संगीत एवं स्वस्थ मनोरंजन, आत्मा तक को पवित्र कर देने वाली झंकार की भी साधना करनी चाहिए। जीवन की संपूर्णता सहज ज्ञान के साथ संपूर्ण लय में है, दिव्य तान में है, निनाद में है।
उत्सव-सरस्वती पूजा का उत्सव पूरे भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। विद्यार्थी वहाँ एकत्र होकर सामूहिक रूप से पूजा करते शिक्षण संस्थानों के अतिरिक्त गाँवों एवं मुहल्लों में भी सरस्वती पूजा अत्यन्त श्रद्धा से की जाती है। जगह-जगह पर माँ सरस्वती की प्रतिमाएँ स्थापित की जाती है। तोरणों एवं फूल पत्तियों से सजाकर माता की पूजा पूरी विधि-विधान से की जाती है। दिन भर पूजा एवं प्रसाद वितरण का दौर चलता रहता है। रात में लोग सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लेते हैं। दूसरे या तीसरे दिन प्रतिमाओं को किसी जलाशय में विसर्जित कर – दिया जाता है। इस तरह यह उत्सव पूरे हषर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ सम्पन्न होता है।
महात्म्य वसंत पंचमी में शताब्दियों से माता सरस्वती की पूजा होती आ रही है। यह एक सांस्कृतिक पर्व है। माता सरस्वती ‘सत्यम’, ‘शिवम्’, ‘सुन्दरम्’ के रूप में संसार में सुख, शांति और सौन्दर्य का सृजन करती है।
यह दिन संगीत, कला आदि के ज्ञान अर्जन का शुभारंभ करने के लिए उत्तम होता है। ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन सरस्वती पूजा करने से देवी प्रसन्न होती है और भक्तों को ज्ञान, संगीत, कला आदि में निपुण होने का आशीष देती है।
3.विज्ञान वरदान या अभिशाप। विचार बिन्दु- 1. भूमिका, 2. लाभ, 3 . हानि, 4. उपसंहार।
भूमिका-विज्ञान का अर्थ होता है- विशिष्ट ज्ञान अर्थात् किसी वस्तु या विषय के बारे में विशेष और व्यवस्थित ज्ञान होना। यकीनन विज्ञान अंधकार पर प्रकाश की, अज्ञान पर ज्ञान की, शक्ति पर बुद्धि की विजय का नाम है। प्राचीन काल में असंभव समझे जाने वाले तथ्यों को विज्ञान ने संभव कर दिखाया है।
आज का युग विज्ञान का युग है हमारे जीवन का कोई भी क्षेत्र इससे अछुता नहीं है। प्रातः जागरण से लेकर रात के सोने तक सभी क्रिया-कलाप विज्ञान द्वारा प्रदत साधनों के सहारे संचालित होते हैं।
लाभ-आधुनिक मानव का संपूर्ण जीवन विज्ञान के वरदानों के आलोक से आलोकित है। विज्ञान ने हमें रेल, वायुयान, टेलीविजन, मोबाइल, रेडियो, एयर कंडीशनर आदि देकर जहाँ मनुष्य को सुविधाएँ दी है। वही यह प्रमाणित किया है कि आज की दुनिया इसकी मुट्ठी में है। विज्ञान ने शिक्षा, मनोरंजन, स्वास्थ्य,
व्यापार, मानव कल्याण, संचार आदि क्षेत्रों में हमारी दुनिया ही बदल दी है।
हानि-विज्ञान के कारण सुविधा प्रदान करने वाले उपकरणों ने मनुष्य को आलसी बना दिया है। जिससे शारीरिक शक्ति का ह्रास हो रहा है और नये-नये रोग भी उत्पन्न हो रहे हैं। यंत्रों के अत्यधिक उपयोग ने देश में बेरोजगारी बढ़ा दी है। अधिकांश के मुँह की रोटी काम के अभाव में छिन गई है।
विज्ञान के दिन-प्रतिदिन होते जा रहे नवीन आविष्कारों के कारण पर्यावरण प्रदूषण की विकट समस्या खड़ी कर दी है। विज्ञान ने एक ओर मनुष्य को जहाँ अपार सुविधाएँ प्रदान की है वही दूसरी ओर मानव को विध्वंस की पीड़ा से कम आकित नहीं किया है। दिन पर दिन बढ़ते विभिन्न प्रकार के अपराधों में विज्ञान का बड़ा योगदान है।
उपसंहार यदि हम विज्ञान से होने वाले लाभ और हानि का अवलोकन करें तो हम देखते हैं कि विज्ञान का सदुपयोग और दुरुपयोग मनुष्य के हाथ में है। यह बात मनुष्य पर निर्भर करता है कि वह उसका प्रयोग वरदान के रूप में करता है या फिर अभिशाप के रूप में।
विज्ञान एक तलवार की तरह होता है जिससे मनुष्य की रक्षा भी की जा कती है और अपने आप को हानि भी पहुँचाई जा सकती है। अर्थात् विज्ञान का सकती सदुपयोग और दुरुपयोग मनुष्य के हाथ में है।