बिहार बोर्ड महत्वपूर्ण प्रश्न
10th Exam 12th Exam Bihar Board Exam Matric Exam

बिहार बोर्ड Exam 10th और 12th महत्वपूर्ण प्रश्न उतर

1.पर्यावरण विवस

(i) भूमिका, (ii) महत्व, (iii) आवश्यकता, (iv) लाभ, (v) निष्कर्ष

 हमारी पृथ्वी जो हमारा घर है, जहाँ हम मनुष्य पशु-पक्षी, पौधे निवास करते हैं। इसके ही पर्यावरण के संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर हरे साल 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1972 में मानव पर्यावरण पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान हुई थी। 5 जून, 1973 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया, तब से प्रतिवर्ष 5 जून को पर्यावरण (World Environment Day) मनाया जाता है।

महत्व हमारे आस-पास का वातावरण पर्यावरण कहलाता है। यह सभी जैविक तथा अजैविक घटकों यथा पर्यावरण, जलवायु, प्रदूषण तथा वृक्ष सभी को मिलाकर बनता है। ये सभी चीजे यानी पर्यावरण हमारे दैनिक जीवन से सीधा संबंध रखता है और उसे प्रभावित करता है। मनुष्य और पर्यावरण एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। जिस तरह से प्राकृतिक हवा, पानी और मिट्टी दूषित हो रहे हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे एक दिन हमें बहुत हानि पहुँच सकता है।

आवश्यकता-धरती पर जीवन के लालन-पालन के लिए पर्यावरण प्रकृति का उपहार है। पर्यावरण से हमें वह हर संसाधन उपलब्ध हो जाते हैं जो किसी सजीव प्राणी को जीने के लिए आवश्यक है। पर्यावरण के अभाव में जमीन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हमें भविष्य में जीवन को बचाये रखने के लिए पर्यावरण की सुरक्षा को सुनिश्चित करना आवश्यक होगा।

लाभ-पर्यावरण दिवस मनाने से लोगों को विश्वव्यापी तरीके से पर्यावरणीय मुद्दों पर विचार करने के लिए याद दिलाया जाता है। यह पर्यावरण संरक्षण के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाता है और लोगों को पर्यावरण संरक्षण की महत्ता के बारे में जागरूक करता है।

पर्यावरण दिवस वैश्विक सहयोग के लिए एक मंच प्रदान करता है जो व्यक्ति, व्यापार, सरकारों को प्रदूषण कम करने वाले कार्यों को करने के लिए जागरूक करता है। यह पर्यावरण के बारे में ज्ञान प्रसारित करने और पर्यावरणीय साक्षरता को प्रोत्साहित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

निष्कर्ष यह पृथ्वी सिर्फ हमारा घर ही नहीं बल्कि हमारी माता भी है, इसके शोषण और दोहन को रोकना हमारा कर्त्तव्य है। यदि अभी भी इसे नहीं रोका गया, तो इसका परिणाम स्वयं मानव जाति को ही भोगने होंगे। पर्यावरण दिवस मनाने का उद्देश्य यह है कि हम प्रकृति के प्रति अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करें जितना हमारे लिए आवश्यक है। साथ ही अपनी अस्मिता के साथ-साथ इस धरती पर रहने वाले सभी जीवों की अस्मिता का आदर करें तथा पर्यावरण को संरक्षित करने का प्रयास करें।

2.बाल मजदूरी की समस्या

(i) भूमिका, (ii) तात्पर्य, (iii) समस्या के कारण, (iv) निदान

भूमिका बाल मजदूरी एक विकट राष्ट्रीय समस्या है। यह बाल-शोषण और सुरक्षा से जुड़ी गंभीर समस्या है। आज भारत में बच्चों के समग्र विकास हेतु ‘बाल-सुरक्षा अधिनियम’ लागू है। सुप्रीम कोर्ट की सख्त हिदायत है कि बच्चों के शोषण और उत्पीड़न एक सामाजिक अपराध है। लगभग 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को निःशुल्क शिक्षा, सुरक्षा और शोषणमुक्त जीवन, राज्य की नैतिक जिम्मेदारी बनती है।तात्पर्य ‘बाल मजदूरी’ का अर्थ है कि 14 साल तक के किसी बच्चे को बहकाकर, अल्प वेतन देकर काम लेना बाल मजदूरी है। इस शोषण को दंडनीय अपराध माना गया है। बाल मजदूरी के कारण बच्चे अशिक्षित, असुरक्षित और उत्पीड़ित होते हैं। अकसर गरीब अभिभावक अपने बच्चे को स्कूल में भेजने की जगह होटलों, ढाबा, फुटपाथी दुकानों में भेज देते हैं, जहाँ उनका आर्थिक शोषण होता है। जिन बच्चों के हाथ में स्लेट होना चाहिए उन बच्चों के हाथ में प्लेट होता है।

समस्या के कारण बाल मजदूरी का प्रधान कारण अशिक्षा और गरीबी है। अशिक्षित परिवार के लोग बच्चों को पढ़ाने की जगह चाय की दुकान पर, बड़े-बड़े रेस्तराँ में, बड़ी-बड़ी जहरीली गैस-गोदामों में अथवा फैक्ट्रियों में काम पर भेज देते हैं। वहाँ उनका रात-दिन शारीरिक एवं आर्थिक शोषण किया जाता है। जो बच्चे राष्ट्र के भविष्य हैं, जिनका जीवन फूल समान कोमल होता है, वे शोषण, दोहन के और उत्पीड़न के शिकार बन जाते हैं। उनके ऊपर तरह-तरह के जुर्म और शोषण होते हैं। यह बाल शोषण ‘मानवाधिकार आयोग’ के नियमों के खिलाफ गैर जरूरी बाल-उत्पीड़न है। हमें इसे अविलम्ब रोकना चाहिए।

निदान बाल मजदूरी को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने की जरूरत है। केवल कानून बना देने मात्र से सरकार बच नहीं सकती। इसके लिए गरीबी व बेरोजगारी को दूर करने की जरूरत है। बच्चों को स्कूल भेजकर, उन्हें निःशुल्क शिक्षण की सुविधा देकर ही हम बाल मजदूरी को काम कर सकते हैं। इसके लिए बाल जागरूकता एवं शोषणमुक्त सामाजिक व्यवस्था लानी होगी।

बाल मजदूरी सभ्य समाज के लिए कलंक है। इस उत्पीड़न के कारण बच्चों का बचपन रौंदा जा रहा है। उनके ऊपर तरह-तरह के शोषण और उत्पीड़न हो रहे हैं। सभ्य समाज का यह नैतिक दायित्व हैं कि देश के मासूम बच्चों को कैसे शोषण के चंगुल से मुक्त किया जाए। आइए, हम बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कर हँसता हुआ बचपन देने का संकल्प लें। यही समय की माँग है।

3.जातिवाद

(i) जातिवाद का तात्पर्य, (ii) कारण, (iii) हानि, (iv) इसे दूर करने के उपाय, (v) उपसंहार

यजातिवाद का तात्पर्य जातिवाद एक सामाजिक बुराई है जो प्राचीन काल से भारतीय समाज में मौजदू है। वर्षों से लोग इसकी आलोचना कर रहें हैं लेकिन फिर भी जातिवाद ने हमारे देश के सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी है।

जातिवाद किसी व्यक्ति की अपनी जाति के प्रति अंधश्रद्धा है जो कि दूसरों जातियों के हितों की परवाह नहीं करती और अपनी जाति के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अन्य जरूरतों को पूरा करने को ध्यान रखती है।

 

• कारण देश में जातिवाद को बढ़ावा देने और जातिवाद पर लोगों की भावनाओं को आहत करने हेतु बहुत से कारण रहे हैं। आदिकाल में मानव छोटे-छोटे समूह बनाकर जीवनयापन करते थे। कालान्तर में यह छोटे-छोटे समूह जातिवाद में तब्दील हो गये। हमारी पारम्परिक रूढ़िवादी विचारधारा जातिवाद को बढ़ावा देने में सबसे अधिक हवा दे रही है। भारत में जाति प्रथा का सबसे मुख्य कारण यहाँ का सामाजिक वर्ण व्यवस्था थी, जो किसी अच्छे उद्देश्य के लिए स्थापित की गई थी लेकिन उसने विकृति रूप धारण कर लिया और भारत में जातिप्रथा की उत्पत्ति हुई।

हानि-भारतीय समाज पर जातिवाद के दुष्प्रभाव अत्यधिक व्यापक, गंभीर और दूरगामी है। जातिवाद सामाजिक अलगाव की प्रवृत्ति का परिचायक है। इसके चलते समाज अलग-अलग समूहों में बट जाता है। जातिवाद के कारण अनेक छोटे-छोटे उपजाति समूह संगठित हो जाते हैं। इससे व्यक्ति की सामुदायिक भावना अत्यंत संकुचित हो जाती है। यह केवल अपने समूह के हितों के बारे में और सुख-सुविधाओं के बारे में ही सोचता है। यह स्थिति राष्ट्रीय एकतां में बाधक है।

उपाय जातिवाद कोई ईश्वरीय व्यवस्था नहीं है। यह हमोरी आधुनिक सभ्य समाज की देन है। इसलिए जातिवाद को कमजोर करने का उपाय समाज और सरकार दोनों को मिलकर करना चाहिए। जातिवाद को रोकने के लिए शिक्षा के स्तर को इतना ऊँचा उठाना चाहिए कि लोग जातीय संकीर्णता से दूर रहें। जातिवाद को दूर करने के लिए समाज में समानता का भाव लाना आवश्यक है। इसलिए अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन देना चाहिए। ग्रामीण परिवेश में जातिवाद की जड़े काफी मजबूत होती है इसलिए ग्रामीण विकास के साथ-साथ नगरीकरण का तीव्र गति से विकास किया जाना चाहिए।

• उपसंहार-वस्तुतः जातिवाद एक सामाजिक जहर है जिसने भारतीय समाज को इस प्रकार विषाक्त कर दिया है कि उसका इलाज हो पाना कठिन हो गया है। यदि इस जहर को आम जनजीवन से शीघ्र निकाला नहीं गया तो भारतीय समाज के लिए अपने अस्तित्व को बचा पाना कठिन हो जाएगा। हालाँकि आधुनिक युग में जातिवाद कई मायनों में कमजोर हुई

है तो किन्हीं मामलों से मजबूत भी हुई है।

 

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