1. बिहार तब और अब।
विचार बिन्दु- 1. भूमिका, 2. अतीत, 3.
विभाजन, 4. सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक प्रगति, 5. उपलब्धियाँ।
हुआ था। इसकी आबादी करोड़ों में है। बिहार में उड़ीसा अलग हुआ, विहार से झारखंड अलग हुआ, अब बिहार एक छोटा भूखंड है। वहाँ पोजपुरी, वैथिली एवं मगही भाषाएँ बोली जाती है। इसके उत्तर में नेपाल, दक्षिण में प्रारखंड एवं पूरक में बंगाल तथा पश्चिम में उत्तर प्रदेश राज्य है।
अतीत बिहार का अतीत गौरवपूर्ण रहा है। यहाँ नालन्दा एवं विक्रमशिला शिक्षण के संस्थान रहे हैं। यहाँ बुद्ध, महावीर, गुरु गोविन्द सिंह ने जन्म लिया है जिन्होंने मनुष्य मात्र को जीवन की नई दिशाएँ एवं ऊँचाइयों दी हैं। इस राज्य को सीता की जन्मभूमि होने का गौरव भी प्राप्त है। बक्सर में रामचन्द्र शिक्षा ग्रहण करने आए थे। गया बिहार की मोक्षदायिनी नगरी है। इसकी राजधामी पटना है।
विभाजन विभाजन के बाद भी विहार एक बड़ा पूखंड है। यहाँ की सड़कें तेजी से बनी हैं। छः घंटे में कहीं से भी पटना पहुँचा जा सकता है। पटना, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, छपरा, बक्सर, आरा, गया, भागलपुर इत्यादि इसके बड़े शहर हैं। यहाँ खा आठ विश्वविद्यालयों द्वारा उच्चतर शिक्षा दी जाती है। मेडिकल एवं अभियांत्रिक इसक कॉलेजों की कमी है। लोग जातीयता एवं रूढ़ियों को तोड़कर आगे बढ़ रहे हैं। भाषा-शिक्षण एवं कला-शिक्षण यहाँ विकास कर रहा है। रामधारी सिंह ‘दिनकर’ रामवृक्ष बेनीपुरी, आरसी प्रसाद सिंह, अरूण कमल एवं नन्दकिशोर नवल यहाँ के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। विभाजन के बाद से यहाँ का चहुंमुखी विकास हो रहा है। प्रशासन संवेदनशील है।
सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक प्रगति विहार की सामाजिक, आर्थिक
और शिक्षा-विषयक प्रगति तेजी से हो रही है। बिहार के लोग प्रगति के ललायित हो रहे हैं। जातीयता टूट रही है। आर्थिक और शैक्षिक प्रगति भी तेजी से हो रही है। हमें याद रखना होगा-
‘हम गिरे, गिरकर उठे, उठकर चले
इस तरह कि हमने, तय की हैं मंजिलें।’
उपलब्धियाँ वर्तमान समय में बिहार का चहुमुखी विकास हो रहा है। यहाँ की सरकार कानून का राज चलाने के लिए प्रतिबद्ध है। वर्तमान समय में प्रशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, परिवहन, विज्ञान आदि क्षेत्रों में विकास की नई ऊँचाइयों को छु रहा है। नशाबंदी और दहेज प्रथा जैसे सामाजिक बुराई पर रोक लगने से सामाजिक परिवर्तन भी दृष्टिगोचर हो रहे हैं। आर्थिक दृष्टि से भी बिहार बोमारू राज्य से अब बाहर आ रहा है। अब बिहार भारत का तेजी से विकास करता राज्य बनता जा रहा है।
2. दहेज प्रथा एक अभिशाप विचार बिन्दु- 1. परंपरा और रूढ़ि, 2. भारतीय समाज की विद्रूपता 3. बढ़ती माँगे और नववधू पर अत्याचार, 4. दहेज विरोधी कानून, 5. कैसे छुटकारा पाएं।
परंपरा और रूढ़िएहेज’ का अर्थ होता है सौगात। इस भेंट या सौगात की प्रम्परा भारतीय रीति-नीति में बहुत पुरानी है। प्राचीन आर्य ग्रंथों के अनुसार विवाह के समय कन्या के माता-पित्ता अपनी सामर्थ्य और शक्ति के अनुरूप कन्या के प्रति वात्सल्य के प्रतीक के रूप में कुछ उपहार भेंट कर दिया करते थे। यानी दहेज प्रथा थी पर आज के समान विवाह पूर्व कोई शर्त नहीं थी। यह अपनी सामर्थ्य और उत्साह के अनुसार देते थे। यह आज के तराण बाध्यकारी नहीं था।
भारतीय समाज की विद्रूपता-यों तो हमारे देश में कई ऐसी प्रथाएँ प्रचलित
हैं जिनके भीतर न जाने कितनी बुराइयाँ भरी पड़ी हैं, लेकिन समाज में कोढ़ में खाज की तरह जो कुप्रथा सबसे घृणित, त्याज्य एवं शर्मनाक है, वह है-दहेज प्रथा। इस कलंकित कुप्रथा ने हमारे पारिवारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में सड़ांध की ऐसी विषैली स्थिति उत्पन्न कर दी है कि हमारा संपूर्ण जीवन इससे विषाक्त हो गया है। इससे हमारे लोक जीवन की सारी मर्यादाएँ खंडित हो गयी हैं। हमारे सामाजिक जीवन के पारंपरिक आदशों के सामने प्रश्न चिह्न-सा लग गया है। यही कारण है कि बहुविध राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक और राष्ट्रीय समस्याओं
की भाँति यह भी एक गंभीर समस्या बन गयी है। बढ़ती माँगे और नववधू पर अत्याचार आज दहेज प्रथा के भयंकर कुपरिणाम
चतुर्दिक तांडव कर रहे हैं। इस कुप्रथा ने आज हमारे पारिवारिक और सामाजिक जीवन में ललनाओं की, बालाओं की, वहन और बेटियों की स्थिति बड़ी ही दुर्बल और शोचनीय बना दी है। इस दहेज प्रथा के कारण न जाने कितनी भारतीय नववधू को अपने क्रूर हाथों से गला घोंट दिया है। दहेज के प्रभाव में लड़की अयोग्य वर को सौंप दी जाती है। द्वन्द्व और संघर्षों के बाद तलाक की नौबत आ जाती है। दहेज के बढती माँगों के कारण माता-पिता ऋण के बोझ से दब जाते हैं। इस तरह
दहेज मानव जाति के लिए एक अभिशाप है।
3. समय की महत्ता।
विचार बिन्दु- 1. भूमिका, 2. समय रहते सचेत रहना 3. दुरुपयोग की
दहेज विरोधी कानून-दहेज प्रथा के उन्मूलन के लिए 1961 ई० में दहेज-निरोधक अधिनियम बनाया गया परंतु जनता के पूर्ण सहयोग के अभाव में यह कानून के पन्नों तक सीमित रहा। इसके उन्मूलन के लिए समाज में परम आवश्यक है। इसके लिए शिक्षित और सभ्य समाज को आगे आना चाहिए।
जागृति
कैसे छुटकारा पाएँ-दहेज प्रथा की कालिमा की छाया दिन व दिन गहरी होती
जा रही है। परिणामस्वरूप घर की लक्ष्मी तिरस्कार की वस्तु समझी जाने लगी है।
भूमिका मानव जीवन में समय अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। समय किसी के लिए रुकता नही हातात है। जिसने समय को नष्ट किया, समय उसको नष्ट कर देता है। जो मिनटों का ख्याल रखता है, घंटे उसका ख्याल रखते हैं। जो समय से प्यार करते हैं, समय के साथ चलते हैं वे ही अपने जीवन में सफल होते हैं।
समय रहते सचेत रहना समय का हमें सदुपयोग करना चाहिए। समय रहते हमें सावधान रहना चाहिए क्योंकि समय बीत जाने पर पछताना पड़ता है। विद्यार्थी के लिए समय अत्यन्त मूल्यवान होता है अन्यथा उन्हें जीवन भर समय की मार को झेलना पड़ता है। आग लगने पर कुओं नहीं खोदा जाता है। इसके लिए पहले से सचेत और तैयार रहना पड़ता है।
दुरुपयोग की हानि समय के दुरुपयोग से हानि ही हानि है। ‘का वर्षा जब कृषि सुखाने’ जब खेती ही सूख गयी तो वर्षा से क्या लाभ। अर्थात् सब कुछ समय पर ही शोभा देती है। समय स्वयं कहता है- तुम मुझे नष्ट करोगे, मैं रोगे, मैं तुम्हें नष्ट कर दूँगा। अधिकांश विद्यार्थी समय का दुरुपयोग करते हैं। दूरदर्शन, मोबाइल, इंटरनेट ने उनके खोपड़ी को खराब कर दिया है। जो समय का दुरुपयोग करता रहेगा एक दिन वह रसातल में चला जायेगा।
सदुपयोग का लाभ समय के सदुपयोग से मनुष्य का वर्तमान और भविष्य सुखमय बनता है। समय का सदुपयोग करने वाले जीवन में आगे बढ़ते हैं। देश में इंजीनियरिंग, मेडिकल, कम्प्यूटर, मैनेजमेंट इत्यादि क्षेत्रों में एक से एक प्रतिभाशाली छात्र समय के सदुपयोग से ही शीर्ष पर पहुँचे हैं। समय का सदुपयोग करके ही अमरिका, जापान, चीन विश्व के शीर्षस्थ सम्पन्न राष्ट्र बन गए।
उपसंहार-निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि समय अत्यन्त मूल्यवान है। हमें इसे बर्वाद नहीं करना चाहिए। छात्रों को अपना बहुमूल्य समय पढ़ाई में लगानी चाहिए ताकि अपना और राष्ट्र के विकास में सहभागी बन सके।
One Reply to “बिहार बोर्ड Matric Exam 10th और 12th महत्वपूर्ण प्रश्न उतर देखें।”