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बिहार बोर्ड 10th geography Solved Question answer 2025।

 सौरमंडल

सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले विभिन्न ग्रहों क्षुद्रग्रहों धूमकेतुओं, उल्काओ तथा अन्य आकाशीय पिंडों के समूह को सौरमंडल (Solar system) कहते हैं। सौरमंडल में सूर्य का प्रभुत्व है, क्योंकि सौरमंडल निकाय के द्रव्य का लगभग 99.999 द्रव्य सूर्य में निहित है। सौरमंडल के समस्त ऊर्जा का स्रोत भी सूर्य ही है।

सोनेसन सौरमंडल से बाहर बिल्कुल एक जैसे दिखने वाले जुड़वाँ पिडों का एक समूह है।

सूर्य (Sun)

गुर्य (Sun) गौरमंडल का प्रधान है। यह हमारी मदाकिनी दुग्धमेखला के केन्द्र में लगभग 30.000 प्रकाशवर्ष की दूरी पर एक कोने में स्थित है।

यह दुग्धमेखला मदाकिनी के केन्द्र के चारों ओर 250 किमी/में की गति से परिक्रमा कर रहा है। इसका परिक्रमण काल दुग्धा के केना के चारों ओर एक बार घूमने में लगा समय 25 करोड (25) मिलियन) वर्ष है जिसे ब्रह्माड वर्ष (Cosmos year) वाहते हैं। सूर्य अपने अक्ष पर पूर्व से पश्चिम की ओर घूमता है। इसका मध्य भाग 25 दिनों में व ध्रुवीय भाग 35 दिनों में एक पूर्णन करता है। पूर्व एक गैसीय गोला है, जिसमें हाइड्रोजन 71% हीलियम 26.5% एवं अन्य ताव 2.5% होता है। सूर्य का केन्द्रीय भाग कोष (Core) कहलाता है. जिसका ताप 1.5 10 होता तथा गुर्य के बाहरी गतरह का तापमान 6000°C k

हे वैद्य (Hans Bethe) ने बताया कि 10° °C ताप वर सूर्य के केन्द्र पर चार हाइड्रोजन नाभिक मिलकर एक हीलियम नाभिक का निर्माण करता है। अर्थात सूर्य के केन्द्र पर नाभिकीय संलयन होता है जो सूर्य की ऊर्जा का स्रोत है।

सूर्य की दीप्तिमान सतह को (Photosphere) कहते हैं। प्रकाशमड़क के किनारे प्रकाशमान नहीं होते, क्योंकि सूर्य का वायुमंडल प्रकाश का जपशोषण कर लेता है। इसे वर्णन (Chromosphere) कहते हैं। यह बाल रंग का होता है।

सूर्य ग्रहण के समय सूर्य के दिखाई देनेवाले माग को (Corona) चाहते है यह सूर्य का बाह्यतम परत है। गुर्य किरीट X-ray उत्सर्जित करता है। इसे कहा जाता है। पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय सूर्य किरीट से प्रकाश की प्राप्ति होती है। सूर्यउ-5 विलियन वर्ष है।

भविष्य में सूर्य द्वारा ऊर्जा देते रहने का समय 10 वर्ष है।

सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में 8 मिनट 16.6 सेकेण्ड का समय लगता है।

सौर ज्याला को उत्तरी ध्रुब पर औऔर दक्षिणी

पूर्व पर औरोरा जस्ट कहते हैं।

प्रारंभ में पृथ्वी को गन्पूर्ण ब्रह्मांड का केन्द्र माना जाता था जिसकी परिक्रमा सभी आकाशीय पिंड (Celestical bodies) विभिन्न कक्षाओं (Orbit) में करते थे। इसे (Geocentric Theory) गया। इसका प्रतिपादन मिस्र पूनानी खगोलशायी ने 140 ई. में किया था। इसके बाद पोलैंड के खगोलशास्त्री (1473-1543) ने यह दर्शाया कि सूर्य ब्रह्मांड के को पर है तथा यह इसकी परिक्रमा करते हैं। अत सूर्य विश्व या ब्रह्माड का केन्द्र बन गया। हुमेह (Heliocentric Theory) कहा गया। 16वीं शताशी में सहायक (1571-1630) में प्रक्रीय कक्षाओं के नियमों की खोज की परन्तु इस भी सूर्य को ब्रह्मांड का केन्द्र माना गया। 20वीं शताब्दी के आरंभ में जाकर हमारी मदाकिनी दुग्धमेखला की तीर स्पष्ट हुई। सूर्य को इस महाकिनी के एक सिरे पर अवस्थित पाया गया। इस प्रकार सूर्य को ब्रह्माह के केन्द्र पर होने का गौरव समाप्त हो गया।बोर कंजर ने सिद्ध किया कि सूर्य के चारों ओर प्रत्येकको मार्ग दीर्य वृत्ताकार है।

सूर्य के धब्बे (चलते हुए पैसों के खोल का तापमान के तापमान से 1500°C कम होता है। सूर्य के धब्बों का एक पू चक 22 वर्षों का होता है पहले तक यह बाब है और बाद के ।। तयाताहै। सूर्यको सतह पर ब्यादिखलाई पड़ती पर मुई की दिशा बदल जातीय

सूर्य के धने (चलते हुए पैसों के खोल) का तापमान आसपास के तापमान से 1500°C कम होता है। सूर्य के धब्बों का एका पूरा चक 22 वर्षों का होता है, पहले 11 वर्षों तक यह धब्बा बता है और बाद के 11 वर्षों तक यह धब्बा घटता है। जब सूर्य की सतह पर च्या दिखलाई पड़ता है. उस समय पृथ्वी पर चुम्बकीय संज्ञाचार (Magnetic Storms) उन्न होते हैं। इससे सुवीर यातित मशीन आदि में ही उत्पन्न हो जाती है।

सूर्य का ब्याग 13 लाख 92 हजार किमी है जो पृथ्ची के व्यास को कगभग 110 गुना है।

 पूर्व हमारी पृथ्वी में 13 लाख गुना बड़ा है और पृथ्वी को सूर्यताप का 2 अरवतां भाग मिलता है।

आपका अर्थ है सूर्य का ध्रुवीय पुल में देर मध्यरात्रि का सूर्य आर्कटिक क्षेत्र में दिखाई है।

राष्ट्रीय (International Astronomical Union-LAL) की प्राग सम्मेलन 2006 के अनुगार सौरमहल में मौजूद पिंडों को निम्नलिखित तीन वेणियों में बाँटा गया है 1. बुध, शुक्र, पृष्नी मगल बृहस्पति अनि अरुण एवं वरुण।

2. सूरी, चेन, मेरम, 2003 सूत्री 313।

धूमकेतु उपय एवं अन्य छोटे खगोलीय पिंड ग्रह वे खगोलीय पिंड हैं जो निम्न शर्तों को पूरा कराते हो। जी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करता हो उसमें पर्याप्त गुरुत्वाकर्षम बल हो जिससे वह गौल स्वरूप ग्रहण कर सके। उसके आस पास का क्षेत्र साफ हो पानी उसके आसपास जन्य पोलीय पिंडों की भीड़-भाड़ न हो। ग्रहों की उपर्युक्त परिभाषा आई. एन. यू. की प्राग सम्मेलन (अगस्त-2006 ई.) में तय की गई है। प्रह की इस परिभाषा के आधार पर यम (Plato) को ग्रह के श्रेणी से निकाल दिया गया फलस्वरूप परम्परागत पही की संख्या 9 में घटकर 8 रह गयी। घम को बौने ग्रह की श्रेणी में रखा गया है। ग्रहों को दो भागों में विभाजित किया गया है

 

1. पार्थिव (Terrestrial or Inner planet)

बुध, शुक्र, पृथ्वी एवं मगल को पार्थिव ग्रह कहा जाता है, क्योंकि ये पृथ्वी के सदून होते हैं। ये सूर्य व सुद्रग्रहों की पट्टी के बीच स्थित है इसीलिए इसे आन्तरिकश पा भीतरी यह भी कहते हैं 2. (lovean or outer planet) बृहस्पति, अनि, अरुण व वरुण को बृहस्पतीय यह कहा जाता है।

मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र एवं शनि, इन पाँच ग्रहों को नंगी आँखों से देखा जा सकता है।

शनि, अरुण, वरुण, पृथ्वी, शुक, मंगल एवं बुध अचति सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति एवं सबसे छोटा ग्रह बुध है।

बनाम में शनि, अरुण,

बृहस्पति, नेज्यून, मंगल एवं शुक।

पूर्व में दूरी के अनुसार बुध, शुक्र, पृथ्वी, मगल, बृहस्पति, शनि, अरुण (पूरेनस) एवं वरुण (च्यून) यानी सूर्य के गबसे निकट का ग्रह बुध एवं सबसे दूर स्थित ग्रह वरुण है। इमान के अनुसार बुध, मंगल, शुक पृथ्वी, अरुण, वरुण, शनि एवं बृहस्पति पानी न्यूनतम इव्यमान वाला ग्रह बुध एवं अधिकतम इष्यमान वासा ग्रह बृहन्पति है।

परिकाबले कम में बुध शुक, पूच्या, मगल, बृहस्पति, शनि अरुण एवं चहण।

परिधाड़ते कम में बृहस्पति शनि, वरुण, अरुण पृथ्वी, मंगल, बुध एवं शुक।

शुक्र, बृहस्पति, बुध पूरी मंगल शनि वह एवं अस

शुक्र एव अरुण को छोड़कर अन्य सभी ग्रहों का पूर्णन एवं परिक्रमण की दिशा एक ही है। शुक एवं अरु पूर्ण की दिशा पूर्व ।

 

 

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