बिहार बोर्ड 10th Scince Vvi solved Question answer।
10th Exam 12th Exam Bihar Board Exam Matric Exam

बिहार बोर्ड 10th Scince Vvi solved Question answer।

प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी

एस.एल.वी-3 (Satellite Launch Vehicle, SLV-3) साधारण क्षमता वाले एस.एल.पी-3 के विकास से भारत ने

प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कदम रखा तथा 18 जुलाई, 1980 को SLV-3 का सफल प्रायोगिक परीक्षण करके अपनी योग्यता को सिद्ध करते हुए स्वयं को अंतरिक्ष क्लब का छठा सदस्य बना लिया। इस क्लब के अन्य पूर्व पाँच सदस्य थे रूस, अमेरिका, फ्रांस, जापान एवं चीन। SLV-3 एक चार चरणों वाला साधारण क्षमता का उपग्रह प्रक्षेपण यान था जो 40 किलोग्राम भार वर्ग के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित कर सकता था। इसका ईंधन (प्रणोदक) ठोस था। SLV-3 का कुल चार प्रायोगिक परीक्षण प्रक्षेपण किए गए, जिनमें द्वितीय तथा चतुर्थ प्रक्षेपण पूर्णतः सफल रहा। 17 अप्रैल, 1983 की SLV-3 की चतुर्थ एवं अंतिम उड़ान द्वारा ‘रोहिणी आर एस डी-2’ को सफलतापूर्वक निर्धारित कक्षा में स्थापित करने के बाद इस उपग्रह प्रक्षेपण पान के कार्यक्रम को बंद कर दिया गया।

ए.एस.एल.वी (Augmented Satellite Launch Vehicle, ASLV); संवर्द्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान अर्थात् ए एस एल वी वास्तव में एस.एल.वी 3 का ही संवर्जित रूप है। इसे 100 से 150 किग्रा. भार वर्ग के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करने के उद्देश्य से विकसित किया गया था। यह एक पाँच चरणों वाला संवर्द्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान था। ठोस प्रणोदक (इंधन) से चलने वाले ए.एस.एल.वी के स्ट्रैप आन प्रथम एवं द्वितीय चरण के लिए स्वदेशी तकनीक से विकसित हाइड्रॉक्सिल टर्मिनेटेड पॉलि ब्यूटाडाइन (NTPB) प्रणोदक तथा तृतीय एवं चतुर्थ चरण के लिए एच.ई.एफ.-20 प्रणोदक का प्रयोग किया गया था। ए.एस.एल.वी. के कुल चार प्रक्षेपण कराए गए जिनमें में से ए.एस.एल.वी-डी 1 (24 मार्च, 87) एवं ए.एस.एल.वी-डी 2 (13 जुलाई, 88) की प्रथम दोनों प्रक्षेपण असफल सिद्ध हुए।

पी.एस.एल.वी. (Polar Satellite Launch Vehicle, PSLV) 1200 किग्रा भार वर्ग तक के दूरसंवेदी उपग्रहों को 900 किमी. ऊँचाई तक की ध्रुवीय सूर्य तुल्यकालिक/समकालिक कक्षा में स्थापित करने के उद्देश्य से पी.एस.एल.वी का देश में विकास किया गया। पी.एस.एल.वी. एक चार चरणों वाला ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान है, जिसके प्रथम व तृतीय चरण में ठोस प्रणोदको तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण में ब्रय प्रणोदकों का उपयोग किया जाता है। ठोस प्रणोदकों के अन्तर्गत हाईड्रॉक्सिल टर्मिनेटेड पॉली ब्यूटाडाइन (HTPB) का ईंधन के रूप में तथा अमोनिया परक्लोरेट का ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है जबकि प्रय प्रणोदक के रूप में मुख्य रूप से अनसिमेट्रिकल डाइ मिथाइल हाइड्राजाइन एवं N₂O, का प्रयोग किया जाता है, जो कमरे के ताप पर द्रवीभूत रहता है।

पी.एस.एल.वी की कुल तीन उड़ान कराई गई, जिसमें प्रथम उड़ान असफल तथा द्वितीय एवं तृतीय उड़ान पूर्णतः सफल सिद्ध हुई।

नोट: पी.एस.एल.वी-सी 3 द्वारा प्रक्षेपित भारतीय दूरसंवेदी प्रौद्योगिकी परीक्षण उपग्रह ‘टीईएस’ भारत का पहला सैनिक उपग्रह है, जो देश के समुद्री इलाकों और विशेषकर चीन एवं पाकिस्तान से लगी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा और नियत्रण रेखा पर किसी घुसपैठ पर प्रभावी नजर रख सकेगा।

जी.एम.एल.वी (Geo Stationary or Geosynchronous Satellite Launch Vehicle-GSLV): जी. एस. एल. वी एक शक्तिशाली तीन चरणों वाला ‘भू-तुल्यकालिक या भू-स्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान है। जी.एस.एल.वी. के प्रथम चरण में ठोस प्रणोदक, द्वितीय चरण में द्रव प्रणोदक तथा तृतीय चरण में क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग किया गया है। ठोस प्रणोदकों के अन्तर्गत हाईड्रॉक्सिल टर्मिनेटेड पॉली ब्यूटाडाइन (HTPB) का ईंधन के रूप में तथा अमोनियम परक्लोरेट का ऑक्सीकारक के

रूप में प्रयोग किया जाता है। द्रय प्रणीदकों के अन्तर्गत मुख्य

रूप से अनतिमेडिकल डाई मिसाइल हाडजाइन (UDMH) एवं N₂O, का प्रयोग किया जाता है, जो कमरे के ताप पर द्रवीभूत रहता है। क्रायोजेनिक तकनीक में प्रणीदक के रूप में अत्यन्त निम्न ताप पर ब्रव हाइड्रोजन (-250°C) एवं द्रव ऑक्सीजन (-183°C) का प्रयोग होता है। जी. एस. एल. वी की पहली विकासात्मक परीक्षण उड़ान 28 मार्च, 2001 को असफल रहा था। जी. एस.एल.वी. की 1 ने. भी प्रायोगिक संचार उपग्रह ‘जीसैट-1′ को 36,000 किमी. की ऊँचाई पर स्थित भू-म्यैतिक स्थानांतरण कक्षा में स्थापित नहीं कर सका और लगभग 1000 किमी. नीचे रह गया। लेकिन जी.एस. एल.वी. डी 2 ने प्रायोगिक संचार उपग्रह जीसैट-2’ (वजन 1800 किग्रा) को पृथ्वी की समानांतर कक्षा से 36,000 किमी. ऊपर स्थापित कर दिया तथा इसका इंडोनेशिया के विआवा और कर्नाटक के ‘हामन’ स्थित मुख्य नियंत्रण प्रणाली से सम्पर्क हो गया। जी.एस.एल.वी-डी 2 को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 8 मई, 2003 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। इस सफलता के बाद भारत उन पाँच देशों (अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ, जापान और चीन) के एलीट ग्रुप में शामिल हो गया जो भू-स्यैतिक प्रक्षेपण में अपनी योग्यता सिद्ध कर चुके हैं।

क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी: फ्रायोजेनिक का शाब्दिक अर्थ निम्नतापिकी है। यह ग्रीक भाषा शब्द क्रायोस से बना है जो वर्षा के समान शीतलता के लिए प्रयुक्त होता है। निम्नतापिकी विज्ञान में 0°C से 150°C नीचे के तापमान को क्रायोजेनिक ताप कहा जाता है। निम्न ताप अवस्था (क्रायोजेनिक अवस्या) वाले इंजनों में अतिनिम्न ताप (-250°C) पर हाइड्रोजन का ईंधन के रूप में तया ऑक्सीजन (-183°C) का ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग होता है। इस प्रौद्योगिकी में इन प्रणोदकों को तरल अवस्था में ही प्रयोग किया जाता है। इसमें ईंधन को परम तापीय अवस्था में प्रयोग करने की विशेषता के कारण इसे क्रायोजेनिक इंजन कहते हैं। इस इंजन की प्रमुख विशेषता है-1 क्रायोजेनिक इंजन में प्रयोग होने वाले द्रव हाइड्रोजन एवं द्रव ऑक्सीजन के दहन से जी ऊर्जा पैदा होती है वह ठोस इंधन आधारित इजन से प्राप्त ऊर्जा से कई गुना अधिक होती है। 2. इसमें ईंधन के ज्वलन की दर को नियंत्रित किया जा सकता है जबकि ठोस ईधन से परिचालित होने वाले इंजन की ज्वलन की दर को नियंत्रित करना कठिन होता है। 3. इस प्रौद्योगिकी से युक्त इंजन में प्रणोदक की प्रति इकाई भार में अधिक बल पैदा होता है जिससे यान को अधिक बल (यस्ट) मिलता है।

नोट: कायोजेनिक इंजन का पहली बार प्रयोग अमेरिका द्वारा एटलांस संदूर नामक रॉकेट में किया गया था।

28 अक्टूबर, 2006 को तमिलनाडु के महेन्द्रगिरि में पूर्ण निम्नताप (क्रायोजेनिक) अवस्या का भारत ने सफल परीक्षण किया। 5 जनवरी, 2014 को भारतीय अंतरिक्ष संगठन (इसरो) ने भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण की क्रायोजेनिक तकनीक विकसित कर जीएसएलवी-D5 (कायोजेनिक इंजन) को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया। भारत क्रायोजेनिक तकनीक का सफल परीक्षण करने वाला छठा देश है। भारत से पूर्व यह क्षमता अमेरिका, रूस, चीन, जापान एवं फ्रांस ने प्राप्त की है।

 

2. भारतीय परमाणु अनुसंघान

 

डॉ. होमी जे. भाभा की अध्यक्षता में 10 अगस्त, 1948 को परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना के साथ ही परमाणु ऊर्जा अनुसंधान की भारतीय यात्रा आरंभ हुई।

भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों के कार्यान्वयन हेतु अगस्त, 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना की गयी। परमाणु ऊर्जा के सभी कार्यक्रम प्रधानमंत्री के तत्वावधान में किए जाते हैं। परमाणविक ऊर्जा विभाग प्रधानमंत्री कार्यालय

बिहार बोर्ड polity महत्वपूर्ण प्रश्न उतर देखें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *