1. भारतीय संविधान के विकास का संक्षिप्त इतिहास 1757 ई. को पसासी की सहाई और 1764 ई. के बक्सर के युद्ध को अग्रेको मला जीत लिये जाने के बाद बंगाल पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया काभानी ने शासन का शिकंजा कसा। इसी शासन को अपने अनुकूल बनाये रखने के लिए अंग्रेजों ने समय-समय पर कई ऐक्ट पारित किये, जो भारतीय संविधान के विकास की सीढ़ियाँ बनीं। वे निम्न है-
> यूएइस अधिनियम का अत्यधिक संवैधानिक महत्य है जैसे-
भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कायों को नियमित और नियंत्रित काने की दिशा में ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया यह पहला कयम था। अधातु कपनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया।
इसके माता पहली बार कंपनी के प्रशासनिक और राजनैतिक कायोंको मान्यता मिलीइसके माता केन्द्रीय ममासन की नींव रखी गयी।
विशेषताएँ:
2. इस अधिनियम द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जेनरल पद नाम दिया गया तथा मुम्बई एवं मझास के गवर्नर को इसके अधीन किया गया। इस एक्ट के तहत बनने वाले प्रथम राबर्नर जेनरलाई बाये।
इस ऐक्ट के अन्तर्गत कलकता प्रेसीडेंसी में एक ऐसी सरकार स्थापित की गई, जिसमें गवर्नर जनरल और उसकी परिषद् के चार सदस्य थे, जो अपनी सत्ता के उपयोग संयुक्त रूप से करते थे।
3. इस अधिनियम के अन्तर्गत कलकता में 1774 ई. में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गयी, जिसने मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे। इसके प्रथम मुख्य न्यायाधीश सराह इच्चे थे (अन्य तीन न्यायाधीशलिस्टर)। इसके तहत कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार रिश्वत लेना प्रतिबंधित कर दिया गया।
5. इस अधिनियम के द्वारा, ब्रिटिश सरकार को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के माध्यम से कपनी पर नियंत्रमा सशक्त हो गया। इसे भारत में इसके वाजस्य, नागरिक और सैन्य मामलों की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देना आवश्यक कर दिया गया।
रेग्यूलेटिंग ऐक्ट की कमियों को दूर करने के लिए इस ऐक्ट का प्रावधान किया गया। इस ऐक्ट के अनुसार कलकता की सरकार को बंगाल, बिहार और उड़ीसा के लिए भी विधि बनाने का प्राधिकार प्रदान किया गया।
कापिइडिया इस ऐक्ट के द्वारा दोहरे प्रशासन का प्रारंभ हुआ। बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स व्यापारिक मामलों के सिगर 2. बोर्ड ऑफ कंकरराजनीतिक मामलों के लिए।
इसके द्वारा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतनादि को भारतीय राजस्व में से देने की व्यस्था की गयी।
इस अधिनियम की मुख्य विशेषता कम्पनी के अधिकार को 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया नाया। 2. काभानी के भारत के साथ व्यापार करने के एक कोचीन किया गया। किन्तु उनके साथ व्यापार एवं पूर्वी देशों के साथ चाय के व्यापार के संबंध में 20 वीं के किए
नागरिकों के लिए भारत के साथ व्यापार खोल दिया गया। 4. 1813 से पहले ईसाई पादरियों को भारत में आने की आज्ञा नहीं थी. परन्तु 1813 ई. के अधिनियम द्वारा ईसाई पादरियों को आज्ञा माप्त करके भारत आने की सुविधा मिल गयी।
– 1833 ई. का धार अधिनियम इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ है। इसके द्वारा कम्पनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिये गये। 2. अब कम्पनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की ओर से मात्र भारत का शासन करना रह गया। 3. बंगाल के गवर्नर जेनरल को भारत का गवर्नर जेनरल कहा जाने लगा। बम्बई तथा महास की परिषदों की विधि निर्माण शक्तियों को वापस ले लिया गया। 5 विधिक परामर्श हेतु गवर्नर जनरल की परिषद् में विधि सदस्य के रूप में चौचे सदस्य को शामिल किया गया। 6. भारत में दास प्रथा को विधि विरुद्ध घोषित कर दिया गया तथा 1843 ई. में उसका उन्मूलन कर दिया गया। 7 अधिनियम को धारा-87 के तहत कम्पनी के अधीन पद धारण करने के लिए किसी व्यक्ति को धर्म, जन्मस्थान, मूल वंश या रग के आधार पर अयोग्य न ठहराए जाने का उपबन्ध किया गया। वनी जनरल की परिषद् को राजस्व के संबंध में पूर्ण अधिकार प्रदान करते हुए गवर्नर जनरल को सम्पूर्ण देश के लिए एक ही बजट तैयार करने का अधिकार दिया गया। भारतीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया तथा इस कार्य के लिए विधि आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था की गयी। 1834 में लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में प्रथम विधि आयोग का गठन किया गया।
1553 ई. का बार्टर अधिनियम इस अधिनियमकी मुख्य विशेषताएँ है-1. इस अधिनियम के द्वारा सेवाओं में नामजदगी का सिद्धान समाप्त कर कम्पनी के महत्वपूर्ण पदों को प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर भरने की व्यवस्था की गयी। इसके लिए 1854 ई. में मैकाले समिति की नियुक्ति की गई। 2. इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल की परिषद् के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया गया। इसके तहत परिषद् में छह नए पार्षद जोहे गए, जिन्हें विधान पार्षद कहा गया।
1855 ई. का भारत अधिनियम इस अधिनियम की विशेषताएँ हैं भारत का शासन कम्पनी से लेकर ब्रिटिश काउन के हाथों में सौपा गया। 2. भारत में मंत्रि-पद की व्यवस्था की गयी। 3. पन्द्रह सदस्यों की भारत परिषद का सूजन हुआ। (5 सदस्य ब्रिटिश सरकार द्वारा एवं सदस्य कंपनी के निदेशक महल द्वारा 4 भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद का सीधा नियंत्रण स्थापित किया गया। 5. मुगल सम्राट के पद को समात कर दिया गया। इस अधिनियम के द्वारा बोर्ड ऑफ डायोक् तथा बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल को समाप्त कर दिया गया। भारत में शासन संचालन के लिए ब्रिटिश मंत्रीधहान में एक सदस्य के क में भारत के राज्य सचिव (Secretary of State for India) को नियुक्ति की गयी। यह अपने कायों के लिए ब्रिटिश संसर के प्रति उत्तरदायी होता था। भारत के प्रशासन पर इसका नियंत्रण था। उसी का वाक्य अंतिम होता था चाहे वह नीति के विषय में हो या अन्य ब्योरे के विषय में। भारत के गवर जनरल का नाम बदलकर बायसराय कर दिया गया। अत समय के गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग अंतिम गवर्नर जरत प्रथम।