भारतीय रिजर्व बैंक ने उन सभी वाणिज्यिक बैंकों, जिनकी शाखाएँ, 10 या उससे अधिक है (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर), को ग्राहकों की शिकायतों की समीक्षा करने के लिए एक स्वतंत्र आंतरिक लोकपाल नियुक्त करने का निर्देश दिया है।
बैंकिंग लोकपाल भारत में कार्यरत भारतीय एवं विदेशी बैंकों से संबंधित शिकायतों चाहे वे शिकायतें भारतीय नागरिकों या प्रवासी भारतीयों अथवा अनिवासी भारतीयों से संबंधित हो या फिर विदेशी नागरिक की भारतीय बैंक से संबंधित को सुनने व उनके समाधान के लिए आवश्यक कदम उठाता है।- भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा डिजिटल लेन-देन के लिए लोकपाल, 2019 की शुरुआत की गई है। इसे भुगतान एवं निपटान प्रणाली अधिनियम 2007 की धारा 18 के अंतर्गत प्रारंभ किया गया है। यह योजना भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विनियमित गैर बैंकिंग संस्थाओं के माध्यम से किए जाने वाले डिजिटल लेन देनों की शिकायतों के समाधान के लिए एक त्वरित एवं लागत मुक्त शिकायत निवारण तंत्र है। बैंकों के माध्यम से किए जाने वाले डिजिटल लेन-देनों से संबंधित शिकायतें बैंकिंग लोकपाल योजना के तहत ही देखी जाएगी।
भारत में सहकारी समितियों द्वारा संचालित किए जाने बैंकों को सहकारी बैंक कहते हैं। ये बैंक जिस राज्य में स्थापित होते है, उस राज्य के नियमों द्वारा संचालित होते हैं। भारत में सहकारी बैंकों का गठन तीन स्तरों वाला है। राज्य सहकारी बैंक सम्बन्धित राज्य में शीर्षस्थ संस्था होती है। इसके बाद केन्द्रीय या जिला सहकारी बैंक जिला स्तर पर कार्य करते हैं। तृतीय स्तर पर प्राथमिक ऋण समितियाँ होती हैं. जो कि ग्राम स्तर पर कार्य करती हैं।
ग्रामीण बैंक की स्थापना 2 अक्टूबर, 1975ई को हुई। इस दिन 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को स्थापित किया गया-मुरादाबाद तथा
गोरखपुर (उ. प्र.), भिवानी (हरियाणा), जयपुर (राजस्थान) तथा माल्दा (प. बंगाल)। सिक्किम और गोवा को छोड़कर देश के सभी राज्यों में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक कार्यरत हैं। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में केन्द्र सरकार, राज्य सरकार तथा प्रवर्तक बैंक 50-15-35 के अनुपात में पूँजी लगाती है। स्वाभिमान योजना का संबंध ग्रामीण बैंकिंग से है। केलकर समिति की सिफारिशों को मानते हुए सरकार ने 1987 में नए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना बंद कर दी। उस समय तक इसकी संख्या 196 थी। 1 अप्रैल, 2020 को क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की कुल संख्या 38 है।
नोट बैंकिंग प्रणाली की पुनर्सरचना के सम्बन्ध में सुझाव देने हेतु 1991 ई. में नरसिम्हम् समिति का गठन किया गया। इसने बैंकिंग संरचना को चार स्तरीय अधिक्रम में स्थापित करने का सुझाव दिया था।
राष्ट्रीय कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) देश में कृषि व ग्रामीण विकास हेतु वित्त उपलब्ध कराने वाली शीर्ष संस्था है। नाबार्ड की चुकता पूँजी ₹ 2,000 करोड़ है, जिसमें 72.5% हिस्सेदारी RBI की है। नाबार्ड का मुख्यालय मुम्बई में है। इसकी स्थापना शिवरमन कमेटी की संस्तुति पर छठी पंचवर्षीय योजना के दौरान 12 जुलाई, 1982 में हुई थी। किसान क्रेडिट कार्ड का आरंभ करने तथा ‘स्वयं सहायता समूहों को बैंको से जोड़ने में नाबार्ड की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
बाट किसान क्रेडिट कार्ड योजना की शुरुआत अगस्त, 1998 में तत्कालीन वित्तमंत्री यशवन्त सिन्हा द्वारा की गयी थी।
राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन भारतीय संघ (NAFED) की स्थापना 2 अक्टूबर 1958 को हुई। यह राष्ट्रीय स्तर पर एक शीर्ष सहकारी संगठन है। इसका प्रमुख कार्य चुनी हुई कृषि वस्तुओं को प्राप्त करना, वितरण, निर्यात तया आयात करना है। NAFED ने मूल्य स्तर के स्थिरीकरण तया बाजार में उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं दोनों के हितों की रक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम की स्थापना 1963 ई. में हुई
भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिषद (TRIFED) की स्थापना 1987 में हुई थी।
भूमि विकास बैंक का आरंभ भूमि बंधक बैंक के रूप में 1919 में हुआ था। यह बैंक मूलतः दीर्घकालीन साख उपलब्ध कराती है।
भारतीय औद्योगिक विकास बैंक की स्थापना। फरवरी, 1964 को की गई। इसने अपना कार्य 1 जुलाई, 1966 में शुरू किया।
भारतीय औद्योगिक पुनर्निर्माण बैंक (IRBI) की स्थापना, अस्वस्थ औद्योगिक इकाइयों के पुनर्निर्माण के उद्देश्य से 20 मार्च, 1985 में की गई।बैंकों के पास पूँजी की गावांत वाणिज्यक बैंकों द्वारा व्यावृद्धि की ता कमी ती
निवेशकर्ताबों और परिवार द्वारा कीमत में कमी जर्मात अर्थवावा कमी होती।
उपभोग व्यय एवं निहेलराम गोग में कमी होती। अम्तुओं एवं सेवाओं की कीमत में कमी होगी तो मुशकत के नियत्रण में मददगार होगी।
बैंक दर में कमी करने पर बैंकदर के किरके का ठीक उल्टा प्रभाव पड़ेगा पानी बैंक ऋण कि बैंक के जी की मात्रा बढ़ेगी यानी तरलता में वृद्धि होगी बैंकों के व्याज दर में कमी आएगी साख की मौत में वृद्धि होगी पानी अर्थव्यवस्था की तरलता में वृद्धि होगी मौत में वृद्धि होगी वस्तुओं सेवाओं की कीमतों में वृद्धि अफीति होगी।
अस्पकालिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जिस ब्याज दर पर कॉमर्शियल बैंक रिजर्व बैंक से नकवी ऋण प्राप्त करते है रेपा दर कहलाती है।
रेपोदर में वृद्धि और कमी का प्रभाव बैंक दर के वृद्धि और कभी के प्रभाव के समान ही होता है।
आत्यकालिक अवधि के लिए रिजर्व बैंक द्वारा कॉमर्शियल बैंकों से जिस ब्याज दर पर नकदी प्राप्त की जाती है. रिवर्स रेपो दर कहलाती है। सामान्यतः बाजार में मुद्रा की आपूर्ति बढ़ जाने पर उसमें कमी लाने के उद्देश्य रिजर्व बैंकद्वारा बढ़ी ब्याज दरों पर कॉमशियल बैंकों को अल्प अवधि के लिए नकदी रिजर्व बैंक में जमा करने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है।
वाणिज्यक बैंक RBI को आल्पकालिक ऋण अधिक मात्रा में उपलब्ध कराएंगे और इससे बैंक की तरलता में कमी आएगी। बाजार में तरलता की कमी होगी और परिणामस्वरूप ब्याज दरों में वृद्धि होगी।
निवेशकतीओ और परिवारों द्वारा साख की माँग में कमी होगी अर्थात अर्थव्यवस्था में तरलता की कमी होगी।
उपभोग व्यय एवं निवेश व्यय में गिरावट आएगी अचत समय भौग में गिरावट आएगी।
वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में कमी आएगी अर्थात मुद्रा स्फीति नियत्रण में सहायक होगी
रिवर्स रेपो दर में कमी इसके वृद्धि के विपरीत प्रभाव डालेगी अथात बैंक ऋण कम मात्रा में उपलब्ध करा इसके कारण बैंकों की तरलता में वृद्धि होगी बाजार में भी परिणामस्य ब्याज दरों में कमी जागी होगी तथा वस्तुओं एवं की में वृद्धि होगी और समय माग में वृद्धि वृद्धिनकद आरक्षित अनुपात (सी.आर. आर.) किसी वाणिज्यिक बैंक में कुल जमा राशि का वह (प्रतिशत) भाग जिसे रिजर्व बैंक के पास अनिवार्य रूप से जमा करना पड़ता है, ‘नकद आरक्षित अनुपात’ कहा जाता है। इसकी दर जितनी ऊँची होती है बैंकों की साख सृजन क्षमता उतनी ही कम होती है।
नगद आरक्षित अनुपात में वृद्धि और कमी का प्रभाव बैंक दर में वृद्धि और कमी के प्रभाव के समान ही होता है।
वैधानिक तरलता अनुपात (एस. एल. आर.) किसी भी वाणिज्यिक बैंक में कुल जमा राशि का वह (प्रतिशत) भाग जो नकद स्वर्ण व विदेशी मुद्रा के रूप में उसे अपने पास अनिवार्य रूप से रखना पड़ता है, ‘वैधानिक तरलता अनुपात’ कहलाता है। बैंकों को वित्तीय संकट का सामना करने हेतु रिजर्व बैंक द्वारा ऐसी व्यवस्था की गयी है।
वैधानिक तरलता अनुपात में वृद्धि और कमी का प्रभाव बैंक दर में वृद्धि और कमी के प्रभाव के समान ही होता है।
प्राइम लैंडिंग रेट (पी.एल.आर.) किसी भी बैंक के लिए ‘प्राइम लैंडिंग रेट’ वह ब्याज दर है, जिस पर बैंक उस ग्राहक को जिसके संबंध में जोखिम शून्य है, को ऋण देने को तैयार है। यह दर एक तरह से आधार दर के रूप में कार्य करती है जिसको ध्यान में रखकर अन्य उद्यमियों के संबंध में बैंक अपनी ब्याज दर निर्धारित करता है।
आधार दर प्रणाली (Base Rate) RBI ने PLR आधारित उधार देय प्रणाली के स्थान पर जुलाई, 2010 से आधार दर प्रणाली लागू किया है। इसकी गणना लागत आधारित सूत्र से की जाएगी, यह PLR से कम होगा तथा कोई भी बैंक इससे नीची दर पर किसी को उधार नहीं देगा।
माइक्रो फाइनेंस को विनियमित विकास के लिए राष्ट्रीय
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