1.राष्ट्रभाषा
विचार बिन्दु- 1. आरंभ, 2. पक्ष में तथ्य, 3. आवश्यकता, 4. उपसंहार।
आरंभ-राष्ट्रभाषा का अर्थ है राष्ट्र की भाषा (Language of the Nation) अर्थात् ऐसी भाषा जिसका प्रयोग देश की हर भाषा के लोग आसानी से कर सके बोल सके और लिख सके।
राष्ट्रभाषा का क्षेत्र विस्तृत और देशव्यापी होता है जो समूचे राष्ट्र के अधिकांश जन सामान्य द्वारा प्रयुक्त होती है। भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है लेकिन उसकी अपनी एक राष्ट्रभाषा है- हिन्दी। यह विश्व की प्राचीन, समृद्ध और सरल भाषाओं में एक है।
भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितम्बर, 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि राष्ट्रभाषा के रूप में तो हिन्दी पहले से ही प्रतिष्ठित है, अब इसे वैधानिक रूप से राजभाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए।
पक्ष में तथ्य-किसी देश की राष्ट्रभाषा उस देश की बहुसंख्य लोगों की भाषा को माना जाता है। जब कोई भाषा अपने महत्त्व के कारण राष्ट्र के विस्तृत भूभाग में जनता द्वारा अपना ली जाती है तो वह स्वतः राष्ट्रभाषा का पद प्राप्त कर लेती है। हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है, क्योंकि वह उपर्युक्त कसौटी पर खरी उतरती है।
गाँधी जो ने कहा था-“अगर हिन्दुस्तान को सचमुच आगे बढ़ना है तो चाहे कोई माने या न माने राष्ट्रभाषा तो हिन्दी ही बन सकती है क्योंकि जो स्थान हिन्दी को प्राप्त है वह किसी और भाषा को नहीं मिल सकता।”
राजा राममोहन राय ने कहा था कि “देश की एकता के लिए हिन्दी अनिवार्य है। 1857 के विद्रोह में राष्ट्रीय चेतना को जगाने में राष्ट्रभाषा हिन्दी का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
आवश्यकता-जिस प्रकार किसी राष्ट्र की संप्रभुता एवं स्वभिमान का प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्र चिह्न होता है ठीक उसी प्रकार राष्ट्र की संस्कृति एवं भाषा श्री उसके आत्म-गौरव और अस्मिता का प्रतीक होती है।
आज अंग्रेजी ने हिन्दी का ही नहीं अपितु समस्त प्रादेशिक भाषाओं का अधिकार छीन रखा है। इसलिए आवश्यकता है कि समस्त भारतवासी राष्ट्रीय स्वाभिमान की दृष्टि से विचार करने की ताकि सारा देश एकता के सूत्र में बंध कर अपने पुराने गौरव को पुनः प्राप्त कर सके।
उपसंहार-हिन्दी भाषा अखंड भारत की एकता के आदर्श का मुख्य प्रतीक है। एक राष्ट्र में एक राष्ट्रभाषा हमारे गौरव और हमारी राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का प्रतीक है। अंग्रेजी परस्त लोग भले ही हिन्दी का विरोध करते हैं, किन्तु यह ध्रुव सत्य है कि हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है और एक दिन अन्तरप्रांतीय भाषा के रूप में एक सम्यक भाषा बनकर अंग्रेजी के वर्चस्व को समाप्त कर देगी।निज भाषा की उन्नति ही सब उन्नति का मूल है।बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय के सूल।
2.हमारा विद्यालय
विजर बिन्द्- ।. प्रारंभ, 2 शिक्षण व्यवस्था, 3. पाठ्यक्रमेत्तर कार्य, 4. उपसंहार।
पारंभ प्राचीनकाल से ही विद्यालय को ज्ञान का मंदिर कहा जाता है। वर्तमान मैं प्राचीनकाल के गरुकलों से बहुत अलग है किन्तु आज भी विद्यालयको मंदिर और अध्यापक को भगवान का दर्जा दिया जाता है। यहाँ छात्र अपने अध्यापक से शिक्षा पाकर अपने उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करते हैं।
हमारे विद्यालय का नाम हरिवंश नारायण उच्च माध्यमिक विद्यालय है। ठीक ०.३० बजे चेतना सत्र के साथ हमारा विद्यालय प्रारंभ होता है। इसमें विद्यालय के सारे शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित रहते हैं। सभी विद्यार्थी वर्ग-वार कतारवद्ध खड़े हो जाते हैं। चेतना सत्र प्रार्थना के साथ शुरू होता है, इसके बाद समाचार-वाचन फिर राष्ट्रगान होता है।
शिक्षण व्यवस्था हमारे विद्यालय में लगभग छः सौ विद्यार्थी तथा बीस अध्यापक है। सभी शिक्षक योग्य और अनुशासन प्रिय है। हमारे प्रधानाध्यापक कुशल प्रबंधक है। सारे शिक्षक उनके नेतृत्व में काम करना अपना गौरव समझते हैं।
हमारे विद्यालय में नौवीं, से बारहवीं तक की पढ़ाई होती है। यहाँ पढ़ाई की उत्तम व्यवस्था है। इस विद्यालय के अधिकांश छात्र मैट्रिक एवं इंटर की परीक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होते हैं।
हमारे विद्यालय में एक अच्छा पुस्तकालय है, जिसमें सभी विषयों की पुस्तके हैं। जिसमें दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक तथा मासिक पत्र-पत्रिकाएँ आती है। विद्यालय में एक बड़ा क्रीडाक्षेत्र भी है, जिसमें छात्र विभिन्न प्रकार के खेल खेलते हैं।
पाठ्यक्रमेत्तर कार्य- हमारे विद्यालय में अध्ययन और खेल के अलावे कई प्रकार की सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती है। प्रत्येक शनिवार को बाल सभा होती है। कक्षावार बच्चे विद्यालय परिसर के साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखते हैं।
हमारे शिक्षकों द्वारा वाद-विवाद प्रतियोगिता, क्विज प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। जिसमें बच्चे उत्साह के साथ भाग लेते हैं। इनके साथ ही सभी महापुरुषों के जन्म जयन्ती कार्यक्रम को बड़े धूमधाम से मनाई जाती है।
विद्यालय के सामूहिक उत्सवों के द्वारा छात्रों में सहयोग, सहानुभूति, एकता और अपनत्व की भावनाओं का उदय होता है। छात्रों में संगठन शक्ति जागृत होती है और अपने विचारों को दूसरे के सामने प्रकट करने की क्षमता आती है।
उपसंहार-विद्यालय और शिक्षा का एक व्यक्ति के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। राष्ट्र के विकास के लिए आवश्यक है कि बच्चों का सर्वांगीन विकास हो और इसके लिए हमारा विद्यालय एक उपयुक्त जगत है।
3.सित्रता
विचार के बिंदु- 1. शुरुआत, 2. फायदे, 3. नुकसान, 4. निष्कर्ष।
प्रारंभ मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसलिए समाज में रहना मनुष्ण का सामाजिक गुण है। उसे जीवन में सुख और दुख के पलों को साझा करने के लिए हर समय किसी न किसी मित्र या साथी की आवश्यकता पड़ती है।
आमतौर पर मित्रता का प्रारंभ समान उम्र चरित्र और पृष्टभूमि के व्यक्तियों के बीच होता है। सच्ची मित्रता रंग-रूप, जात-पात, ऊँच-नीच, अमीरी-गरीबी तथा किसी प्रकार के भेद-भाव पर आधारित नहीं होती। यह एक दूसरे पर विश्वाम भावनाओं और उचित समझ पर आधारित होता है।
सच्ची मित्रता सिर्फ सुख के ही क्षणों की कामना नहीं करती है। दुख के पलों में भी मित्रता ढाल बनकर आती है और मित्र के रक्षा के लिए तत्पर रहती है। दिन हो या रात, सुख हो या दुख, जरूरत पड़ने पर मित्र ही हमारे समीप होता है और हमें साथ देता है। सच्ची दोस्ती हमें जीवन में कई प्रकार के यादगार, मीठे और सुखद अनुभव देती है। मित्रता किसी के जीवन की सबसे कीमती संपत्ति है जिसे वह कभी खोना नहीं चाहता है। कुछ लोग अपने बचपन की दोस्ती को पूरी जिदगी सफलतापूर्वक निभाते हैं।
लाभ-सच्चा मित्र दुनिया का सबसे विश्वासी व्यक्ति होता है जो सदैव सन्मार्ग की ओर अग्रसर करता है। अच्छे लोगों की मित्रता अत्यंत लाभकारी होती है। वह हमारे दुख दूर करता है, हमारे भीतर सद्विवेक को जगाता है। वह हर वक्त उचित मार्गदर्शन कर कुपथ से सुपथ की ओर बढ़ाता है।
हमारे धर्मग्रंथों और पुराने साहित्यों में अच्छे मित्र के कई उदाहरण मिलते हैं। कृष्ण-सुदामा, राम-सुग्रीव, महाराणा प्रताप और झाला सरदार की मित्रता बेमिशाल है। कृष्ण की मित्रता के कारण ही सुदामा की गरीबी दूर हुई और अच्छे दिन लौट आए। इसलिए जीवन में अच्छे दोस्तों का होना वरदान से कम नहीं होता। इसे सदैव सजों कर रखना चाहिए।
हानि- अच्छे मित्र हमें जितना सम्मान देते हैं, बुरे मित्र उतने ही हमें नुकसान पहुँचाते हैं। बुरे मित्र हमें बुराई की ओर ले जाते हैं। वे हमें अपने कर्त्तव्य पथ से भटका कर खैनी-सिगरेट, पान-पराग, शराब की बुरी आदत लगा देते हैं और इस प्रकार कई अच्छे विद्यार्थी बुरी संगत के कारण बर्बाद होते दिखते हैं। लोभ लालच की माया जाल में फंसाकर पथ भ्रष्ट कर देते हैं।पहले के समय में दोस्ती को मरते दम तक निभाया जाता था लेकिन अब प्रेम, विश्वास और त्याग के अभाव में यह एक माह या दो माह से ज्यादा टिक नहीं पाता।
उपसंहार-मित्रता एक प्रकार का पवित्र रिश्ता है। इस रिश्ते को कभी भी पैसा से नहीं तौला जा सकता है। यह हमारे लिए कामधेनु गाय की तरह लाभप्रद है। हमें जीवन में अच्छे मित्र की तलाश करनी चाहिए और बुरे मित्र की संगति से बचनी चाहिए। सच्चे मित्र के बारे में ठीक ही कहा गया है-
जे न मित्र दुःख होहिं दुखारी।
तिन्हहिं विलोकत पातक भारी।।