1.बिजली की आवश्यकत्ता
विचार विन्दु- 1. भूमिका, 2. बिजली ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्त्रोत, 3.उपसंहार
।भूषिका-विजली विज्ञान की बहुत बड़ी देन है। वर्तमान समय में बिजली के बिना आधुनिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। बिजली आज हमारे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन चुकी है। बिजली हमारे जीवन को आरामदायक बना दिया है। बिजली ऊर्जा का शक्तिशाली स्रात है जिसका प्रयोग अनेक प्रकार के कामों में होता है।
बिजली ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्त्रोत-बिजली ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
इससे शहरों का जीवन सुखकर बन जाता है। पेट्रोल, डीजल ऊर्जा के ‘महँगें स्रोत हैं। इसलिए भारत के लगभग सभी राज्यों को बिजली का उत्पादन बढ़ाना होगा। बिजली कृषि-व्यवस्था में भी सहायक सिद्ध होती है। भारत में कृषि के लिए पानी की कमी हो जाती है। बिजली द्वारा निकाले जाने वाला पानी सस्ता भी पड़ता है। कल-कारखाने तो बिजली पर ही निर्भर रहते हैं। आज परमाणु विखंडन से भी बिजली पैदा की जा रही है। यह बिजली सस्ती पड़ती है। जिन शहरों में पहले बिजली दी जाती थी, अब बिजली नहीं मिलने के कारण बड़े-बड़े कारखाने बन्द हो गए हैं। शहरों की पढ़ाई-लिखाई एवं अस्पताल पर भी बिजली की कमी का प्रभाव पड़ा है।
घर, कार्यालय, कारखाना, यातायात सब किसी-न-किसी प्रकार बिजली पर ही निर्भर करते हैं। घरों में बिजली की कमी से पानी भी शुद्ध एवं ठंडा या गर्म नहीं किया जा सकता। पंखे बंद हो जाते हैं। मोटर पानी नहीं खींचता है। बच्चे पढ़ नहीं पाते। कार्यालयों में एसी लगे हैं, पंखें लगे हैं। लेकिन बिजली आपूर्ति में बाधा पड़ने पर कार्यालय की गाड़ी रुक जाती है। समय पर कार्य सम्पन्न नहीं हो पाते। कारखाने तो बिजली पर ही निर्भर रहते हैं। ये कारखाने बन्द हो जायें तो राष्ट्र का उत्पादन गिर जाता है। विदेशों से तब हमें महँगी चीजें खरीदनी पड़ती है। रेलगाडी आजकल बिजली से चलती है। आपूर्ति बाधित होते ही देशभर की रेलगाड़ियाँ जहाँ की तहाँ रुक जाती है। स्टेशनों पर अँधेरा छा जाता है। लिंक फेल हो जाने पर टिकट तक मिलना मुहाल हो जाता है।
उपसंहार-उपसंहारतः हम कह सकते हैं कि भारत एवं बिहार को बिजली की आवश्यकता अधिक है। बिजली उत्पादन बढ़ाकर ही भारत विकासशील देश के स्तर से उापर बढ़कर विकसित राष्ट्र को श्रेणी में नामांकित हो सकेगा।
2.राष्ट्रीय पर्व (स्वतंत्रता दिवस)
यूमिका स्वतंत्रता दिवस हमारे देश की आजादी का एक शुभ दिन है। यह हमारे देश के इतिहास का एक पवित्र पर्व है जो सारे भारत में राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था, भारत माता स्वतंत्र हुई थी। 15 अगस्त का दिन ‘स्वतंत्रता दिवस’ नाम से पुकारा जाता है। इस दिन का ऐतिहासिक और राष्ट्रीय महत्त्व है।
संघर्ष की गाथा भारत को अपनी स्वतंत्रता के लिए लगभग 200 वर्षों तक लगातार अंग्रेजों से संघर्ष करना पड़ा। सबसे पहले सन 1857 में हमने आजादी की पहली लड़ाई छेड़ी थी। लेकिन उस समय हममें एकता नहीं थी, इसलिए हम लोग हार गये। झाँसी की रानी ने अंग्रेजों के दाँत खट्टे किये, सरदार भगत सिंह को फाँसी दी गयी और इस प्रकार न जाने कितने नवयुवकों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिये।
परिणति अंत में महात्मा गाँधी ने देश को आजाद कराया। 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों ने देश को पूरी तरह आजाद कर दिया। स्वतंत्रता का नवप्रभात निकला। स्वतंत्रता का समाचार सुनकर भारतवासी प्रसन्नता से झूम उठे, एक कोने से दूसरे कोने तक हर्ष की लहर दौड़ गई। 15 अगस्त का दिन भारत के राजनीतिक इतिहास का यह ‘स्वर्णिम दिन’ स्वर्ण अक्षरों से अंकित हो गया।
महला-इस राष्ट्रीय पर्व के दिन बड़ी तैयारी के साथ हम देश के अमर शहीदों के अमर बलिदान की कहानियाँ कहते हैं, भारतमाता के चरणों पर श्रद्धा के फूल चढ़ाते हैं और यह प्रतिज्ञा दुहराते हैं कि हम किसी भी कीमत पर सभी आपसी भेदभाव भुलाकर देश की स्वतंत्रता की रक्षा करेंगे।
15 अगस्त की सुबह प्रभात फेरी होती है “भारत माता की जय”, गाँधी जी की जय और 15 अगस्त जिंदाबाद के नारों से हमारे मन और प्राण का उत्साह प्रकट हो उठता है। सभी सरकारी दफ्तरों, कॉलेजों, स्कूलों और अन्य संस्थाओं में झंडा फहराया जाता है। दिल्ली के लाल किले पर प्रधानमंत्री झण्डा फहराते हैं और राष्ट्र को संबोधित करते हैं। राज्य की राजधानियों में मुख्यमंत्री झण्डा फहराने का कार्य करते हैं। सेना की टुकड़ियों का भव्य परेड होता है। स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर कई जगहों पर अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। भारत में इस दिन का उतना ही महत्त्वपूर्ण स्थान है जितना की होली, दीपावली का हिन्दुओं के लिए, क्रिसमस का ईसाइयों के लिए तथा इंद, मुहर्रम, मुसलमानों के लिए।
उपसंहार-राष्ट्रीय पर्व के रूप में स्वतंत्रता दिवस ऐतिहासिक दिन है और स्वतंत्रता एक अमूल्य वस्तु। यह हमारे हजारों-लाखों बलिदानों की कहानी कहता है। इस दिन हमें गाँधी का तप नेहरू का त्याग, सुभाष की वीरता, भगत सिंह का बलिदान और तिलक, गोखले के स्वभिमान की अनेक कथाएँ याद आती हैं। इन महान पुरुषों के सामने हमारे सिर श्रद्धा से अपने आप झुक जाते हैं।
3.आवर्श अध्यापक
विचार बिन्दु- 1
भूमिका, 2 अध्ययनशीलता, 3 जो माता पिता दोनों का प्यार हैं. 4. चरित्रवान, 5. आज अध्यापक की दशा, 6. उपसंहार।
भूमिका देश के सर्वागीण एवं बहुमुखी विकास के लिए, शिक्षा की परम आवश्यकता है और अच्छी शिक्षा के लिए योग्य शिक्षकों की। एक आदर्श अध्यापक ही विद्यार्थियों को शिक्षित और विद्वान बनाकर ज्ञान की एक ऐसी अखंड ज्योति जला देती है जो देश और समाज के अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाती है। एक आदर्श अध्यापक छात्र की आत्मा को भी शुद्ध और पारदर्शी बनाकर उसकी चेतना को परिष्कृत कर देता है।
अध्ययनशीलता-एक जलता हुआ दीपक ही दीपक को जला सकता है उसी प्रकार एक अध्ययनशील अध्यापक ही छात्रों को अध्ययनशील बना सकता है। एक अध्ययनशील, अनुभवशील अध्यापक ही अपने शिष्यों में अनंत गुण एवं शक्ति भर देता है। इसलिए आदर्श अध्यापक को हमेशा अध्ययनशील होना चाहिए।
जो माता-पिता दोनों का प्यार दे- एक आदर्श अध्यापक वही होता है जो अपने विद्यार्थियों को माता-पिता दोनों के जैसा प्यार दे। माता-पिता द्वारा निर्देशन में कुछ कमी होने पर अध्यापक ही उस कमी को पूरा करते हैं। प्यार से पढ़ाने वाले अध्यापक से छात्र आसानी से पढ़ पाते हैं। क्रोधी और दण्डित करने वाले अध्यापकों से छात्र भागते हैं।
चरित्रवान-एक आदर्श अध्यापक के लिए चरित्रवान होना प्राथमिक शर्त्त है। बालकों को चरित्र की शिक्षा अप्रत्यक्ष रूप में शिक्षक से ही मिलती है। छात्र अपने अध्यापक को देखकर ही प्रभावित होते हैं। इसलिए एक आदर्श अध्यापक को चरित्रवान होना आवश्यक है।
आज अध्यापक की दशा-आज समाज में अध्यापक की दशा अच्छा नहीं
है। शिक्षकों के कंधों पर बच्चों के भविष्य निर्माण का भार होता है। लेकिन सरकार द्वारा शैक्षिक कार्य के अतिरिक्त अन्य कार्यों में समायोजित कर दिया जाता है। उन्हें समय पर उचित वेतन भी नहीं मिल पाता है न ही सरकार द्वारा अन्य कोई सुविधा दी जाती है। इस कारण उनकी स्थिति में लगातार गिरावट आ रही है। शिक्षा व्यवस्था का राजनीतिकरण भी शिक्षकों के हितों को प्रभावित करता है।
आदर्श अध्यापक एक ऐसा पत्थर है जिस पर घिसकर छात्रों की बुद्धि प्रखर, चातुर्यपूर्ण, तेजस्वी और उत्साही बन जाता है। आदर्श शिक्षक ही छात्रों में उपलब्ध शक्ति का विकास कर उन्हें मंजिल तक पहुँचा देते हैं।